मुठ्ठी भर आशाएँ

अक्सर सभी ने सुना होगा कि आपको आपसे बेहतर कोई नहीं जानता ,इसीलिए अपनी क्षमताएं पहचानिए और हर रोज़ आगे बड़ते रहिए ।

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Aarti Kushwah
Aarti Kushwah 24 Aug, 2023 | 0 mins read

गिरते रहे, उठते रहे

हर रोज़ मजबूत बनते रहे ,

कुछ आशाएँ हैं मुठ्ठी में ,

जिनके लिए हर रोज़ सपने बुनते रहे ,

उलफ़त में रहे ,तकल्लुफ़ में रहे

सपनों के लिए दुनिया से लड़ते रहे ,

मुठ्ठी न खुलने दी ,

कहीं आशाएँ बिखर न जाएँ

मुठ्ठी भर आशाओं की खातिर ,

हम खुद से भी लड़ते रहे ,

जद्दोजहद में हैं कुछ ख्वाब मेरे ,

कशमकश में हैं आशाएँ भी यहाँ ,

जब तक प्रयास पूरे न हों ,

ख्वाबों को बिखरने कैसे दूँ ?

लश्करों के आते ही राहें क्यों बदल लूँ ?

कैसे भूल जाऊँ ,मेहनत को अपनी ?

मुठ्ठी भर आशाएँ बाकी हैं अभी ।









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Aarti Kushwah

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