तुम डटे रहना
जब-जब कदम बढाओगे,
मुश्किलें हज़ार आयेंगीं,
शुरुआत में सुबह सुहानी,
शामें गुनगुनायेंगी,
ढलने देना वक़्त को ज़रा,
बैचैन-सी सुबह,
शामें अकेली रह जायेंगीं,
मगर तुम डटे रहना उस पत्थर की तरह,
जो चढ सके खराद पर,
बन जाना एक साकार मूर्ति,
जिसको पूजे ज़हाँ भर ।
Paperwiff
by aartikushwah