नारीवाद का प्रश्न नहीं ये
ना ही समानता का सवाल है
अरे निश्चिन्त रहो चिंतित ना हो
नही ये कोई नया बवाल है
अधिकार कुछ हनन हुए तो क्या
ये अब ज़न ज़न का ही हाल है
बस दिनकर के किरणपुंज से
एक किरण उन्हें भी दिलाते हैं
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं
स्वर जरा सा ऊँचा कर लो
कुछ ऊंचे कानो तक पहुंचाना है
वो मनुष्य नहीं क्या? हक नहीं उनको
क्यों कुछ पेटों को भूखे ही सो जाना हैं
उनके कर्तव्यों की है सूची लंबी
पर मूल अधिकारों से वंचित रह जाते हैं
जो देख कर भी ये सब मुँह फ़ेर ले
आश्चर्य मुझे वो रातों की नींद कहाँ से लाते हैं
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है
वो जननी है, तो सृष्टि है
पर देखो लोगों की कैसी दृष्टि है
मातृत्व के ओर प्रथम पायदान पर
वो उन दिनों के लिए अशुद्ध हो जाती है
छुप छुप कर काग़ज में बाँध बाँध कर
सरे आम शर्मिंदा हो साधन जुटाती है
यदि निर्भीक होकर करे ना ऐसा
तो निर्लज्ज भी कहलाती है
अपनी उत्पत्ति का आधार भूल कर
हैं लोग कौन जो ये नियम बनाते है
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है
तुम क्या पहनोगे, वो क्या बोलेंगे?
कोई मापदंड नहीं, वो नजरों से तोलेंगे
तुम्हें कब आना है, कब जाना है
ये सोचे, क्या इतने फुर्सत मे ज़माना है?
वो चार लोग नहीं दुनिया सारी
हम खुदको ही उनका डर दिखलाते है
जो अदृश्य है कहीं दिखते नहीं है
क्यों जीवन का अहम हिस्सा बन जाते है
कहे सुने इन चार लोगों से
क्यों ना अब आजादी पाते है
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं
वो लड़की है तो हँस नहीं सकती
वो लड़का है तो रो नहीं सकता
भावनाओ पर जोर है किसका
हम कौन है जो उन पर प्रतिबन्ध लगाते हैं
समानता की सिर्फ बात है होती
भेदभाव का बीज डाल, हम ही अन्तर बतलाते है
अरे नया युग है, नया देश है, नव युवा को प्रशस्त करो
बढ़ने के लिए मार्ग कोटि खुले है
भेदभाव की बाधा को ध्वस्त करो
प्रयत्न निष्ठ हो कर संसार शिखर पर
देश को अपने पहुंचाते हैं
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है
अतिरेक नहीं अतिउत्साह नहीं
भावों का उद्वेग है ये, उद्दंड मेरा स्वभाव नहीं
वो अवमानना करके भी देखो
सिक्कों से हिसाब चुकाते है
चलो अब आगे आओ
ऐसों को सबक सिखाते है
हमारा शत्रु बस हमारा भय है
हाँ अपने डर को भी सबक सिखाते हैं
हम भूल गए हैं, वो हम ही हैं
जो उस आधी आबादी में आते हैं
चलो ना हाथ बढ़ा कर
आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं
©सुषमा तिवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
क्या बात है।।।
बहुत खूबसूरत रचना दी
बेहतरीन सखी
वाह, क्या खूब लिखा
" अपनी उत्पत्ति का आधार भूलकर, है कौन यह नियम बनाते हैं?" बहुत उम्दा👌🏻👌🏻 बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी कविता🥰🤩💕
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