प्रश्न है कि वोटिंग कैसे होनी चाहिए? उसके पहले हम सब खुद से एक प्रश्न और करते हैं कि वोटिंग क्यों होती है? जाहिर है लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी पसंद की सरकार बनाने के लिए, उपयुक्त प्रत्याशी को चुनते है। अब दूसरा प्रश्न यह उठाएं खुद से ही कि हमने अपनी चुनी हुई सरकार से क्या अपेक्षा रहेगी? वो कौन से कार्य है जो व्यक्ती, समाज और देश हित में होंगे जिन्हें पूरा करने के लिए हम अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजने वाले है।
जहां तक मेरा प्रश्न है इन सारे प्रश्नो के उत्तर में सबसे पहले देश का सर्वांगीण विकास आता है जिसके अंतर्गत शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क - संचार सुविधाएं आदि चीजे आती है। फिर क्यों वोट करते समय लोग जाति, धर्म, क्षेत्रीय या निजी कारण सामने रखते है?
वोटिंग प्रणाली में ई वी एम द्वारा एकत्रित वोट मुझे संतुष्ट करते है क्योंकि अपनी आँखों से बैलेट बॉक्स की दुर्गति देखी है, जाने दीजिए क्षेत्र विशेष की बात यहां अभी नहीं करेंगे।
वोट डालने के माध्यम नहीं बल्कि उसकी प्रक्रिया को और मजबूत बनाना होगा। जहां मैं देखती हूँ इतनी बड़ी आबादी वाले देश के वोटर कम क्यों है? आधे लोगों का वोटिंग लिस्ट में नाम नहीं है (जागरूकता भी नहीं है, उन्हें मतलब भी नहीं है) और जिनका नाम है उनमे से आधे वोट डालने जाते नहीं है जिसके फलस्वरुप वोट के दिन 50% और 55% वोट पड़ने के समाचार से भी चुनाव आयोग खुश हो लेता है। क्या ऐसे चुने जाएंगे जनता के प्रतिनिधि जहां चुनने की प्रक्रिया में सब शामिल ही नहीं है? इसमे सिर्फ सरकारी तंत्रों का दोष नहीं जिन्होंने सदियों से कभी इसे 'आवश्यक' बनाने की कोशिश नहीं की बल्कि दोष जनता भी है जिन्हें लगता है कि एक मेरा वोट नहीं पड़ेगा तो क्या? आज भी घरों में 8 वयस्कों में से चार वोट देंगे तो चार नहीं। मेरा यही मानना है कि वोट देने की प्रणाली को आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि जैसी चीजों की तरह अनिवार्य बनाया जाए।
अगर आप वोट नहीं देते है तो आपको बाकी सुविधाओं से भी वंचित रखा जाए। जब आप सही चुनने की प्रक्रिया में भागीदार नहीं है तो गलत भुगतते समय आपको शिकायत का भी हक नहीं होना चाहिए। एक वयस्क व्यक्ती के पासपोर्ट पर भी एक सशक्त वोटर होने के निशान होने चाहिए जिससे कि यह तय हो कि अगर वह अपने देश के लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा नहीं लेता है तो उसे विदेश जाकर दूसरे देश की सुविधाएं उठाने का भी अधिकार ना हो। सब जानते है कि हमारे संविधान ने हमे अधिकार और कर्तव्यों की सूची दी है तो क्यों हम अपना मूलभूत अधिकार वोट देना जरूरी नहीं समझते जो इस पूरे लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है? क्यों ना इसे अधिकार ना समझ कर कर्तव्य समझा जाए? इतनी बड़ी जनसँख्या के प्रतिनिधि अगर चंद लोगों द्वारा चुने जाएंगे तो असंतोष व्याप्त रहेगा ही फिर पहला सवाल लोग खुद से क्यों नहीं करते कि हमने वोट देने के प्रति कितनी जागरूकता दिखाई? जैसे अन्य कानून बनते है ना और आप आवाज उठाते है पक्ष विपक्ष में तो एक कानून और बने जहां वोटिंग को अनिवार्य बनाया जाए बिल्कुल साँस लेने की तरह। आप अपने वोटिंग क्षमता को किसी भी हाल में दूसरों के कहने पर प्रभावित नहीं कर सकते है।
बहुत से लोग यह कहते है कि किसे वोट दे? कोई इस लायक नहीं है! तो लायक प्रतिनिधि लाना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। क्या कभी किसी ने अपने बच्चे से यह कहा होगा कि खूब पढ़ाई कर.. पढ़ लिखकर देश संभालना है.. नहीं.. कोई नहीं कहता है। बस इसी वजह से यह प्रजातंत्र अब परिवार तंत्र बनने की कगार पर है। वोटिंग प्रणाली भ्रष्टाचार से लिप्त हो रही है।
कुछ कानून बनने चाहिए कि कौन से गुण या योग्यता एक प्रत्याशी में होने चाहिए और इस कानून को पहले से उपलब्ध 'आधे लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों ' द्वारा नहीं बल्कि मेहनत से पढ़ाई करके, व्यवस्था को समझने वाले उच्चतम न्यायधीशों, अधिवक्ताओं, और प्रशासनिक सेवाओं में मौजूद लोगों द्वारा बनवाया जाए.. लागू किया जाए। हर एक व्यक्ति को वोट देना अनिवार्य के साथ सहज हो ऐसी व्यवस्था भी की जाए। वैसे मेरा मानना तो यही है कि सहज ना भी हो तो एक दिन की तकलीफ सह कर भी यदि सुखद भविष्य की गारंटी मिलती हो तो क्या बुराई है? लोग जाने कहाँ कहाँ लाइन लगाते है पर देश के सुनहरे भविष्य के लिए लाइन में लगने से कतराते है।
मेरे द्वारा सुझाए गए पॉइंट्स काल्पनिक लग सकते है पर असंभव नहीं। तकनीकी तौर पर हम इतने विकसित है तो तकनीक का उपयोग जागरूकता फैलाने के लिए किया जाए। प्रशासनिक सेवाओं के लिए प्री टेस्ट होते है फिर राजनैतिक सेवाओं के लिए क्यों नहीं? प्रत्याशी हमारे संविधान को, देश की अर्थिक, सामाजिक हालत को कितना जानता है क्या इसका कोई टेस्ट नहीं होना चाहिए? 'अभी नए है कुछ सालो में जान जाएंगे, मौका दीजिए' जैसे जुमले! क्या सीखने के लिए देश का भविष्य ही मिला? अयोग्य और आपराधिक लोग कैसे हमारा प्रतिनिधित्व कर सकते है? चुनावों में पैसे खर्च करने पर सख्त नियंत्रण हो ताकि एक योग्य और नया प्रत्याशी आर्थिक अभाव के कारण भीड़ में गुम ना हो जाए।
मुझे नहीं पता पूरी तरह से संवैधानिक बातें या कानूनी प्रक्रिया पर इतना जरूर जानती हूं कि जब कम लोगों को वोट देते देखती हूँ और गलत लोगों को चुने जाते देखती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है।
हाँ एक नियम और होना चाहिए ताकि वोटर खुद को ठगा महसूस ना करे.. ये चुने जाने के बाद पार्टी बदलना या नए तिकड़मी गठबंधन बनाना। लोग एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचार को वोट देते है जो चुने जाने के बाद अचानक सब बदल लेते है.. यह धोखाधड़ी है। इसे रोकना चाहिये। मुझे नहीं पता कैसे होगा बस ये नहीं होना चाहिए। वोटिंग चाहे जैसे भी हो 100% होनी चाहिए, निष्पक्ष होनी चाहिए और जरूर होनी चाहिए।
-सुषमा तिवारी
(मैं शायद सारी चीजों को नहीं जानती, ये मेरे विचार है और शायद शब्दों का उचित प्रयोग भी नहीं कर पाई। सच बोलू तो यह विषय मुझे क्रोध दिलाता है, एक अजीब सी बेचैनी जैसे सब कुछ देखते हुए कुछ ना कर पाने की बेचैनी। इतना कुछ नजदीक से देखा है कि बहुत दुख होता है। आने वाली पीढ़ी कहीं इसका दोषी हमे ही ना समझे कि वक्त रहते हमने आवाज नहीं उठाई।
आपके सुझाव आमंत्रित है शायद मुझे कुछ सुकून मिले 🙏)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Amazing Sushmaji!! ❤️
बहुत बढ़िया आलेख सुषमा जी। आपके उठाए गए सारे मुद्दों से सहमत हूँ।
Bahut badhiya ma'am....❤️❤️
कुछ बातों को छोड़कर काफी हद तक सहमत हूँ । आपका लेखन पढ़कर यह खुशी हुई कि कम से कम इस बारे में हम सोच तो रहे हैं ।
Informative article
बहुत बढ़िया लिखा
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