सुबह से शाम बीत गयी और पता भी न चला
फिर जब लिखने को कलम उठायी तो ख्याल आया
मैं क्यों लिखती हूँ?
हाँ ये सवाल पहले कभी नहीं आया मन में
फिर न जाने क्यों आज ये सवाल बार बार मुझे खाये जा रहा है
सोचती हूँ पहली बार कलम क्यों उठायी
कैसे लिखी थी अपनी पहली कविता
मैं छठी कक्षा में थी जब मैंने पहली कविता लिखी थी
"पेड़" यही शीर्षक था
वो कविता स्कूल मैगज़ीन में भी छप गयी
फिर मैंने लिखने के बारे में कुछ सोचा नहीं
2 साल बाद यूं ही खेल समझ कर मैंने कविता लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया
जब शीर्षक सुना तो मैं हैरान रह गयी
"भारत माता" इस पर तो खिल्ली उड़ाने का मतलब है माँ की बेइज्जती जो मैं कतई सहन नहीं कर सकती थी
जो सबके लिए खेल था मैंने उसमें भारत माँ के प्रति भावनाएं लिख डाली
उस दिन एक सुकून का एहसास हुआ मुझे
मानो कोई बोझ हल्का हो गया हो मन से
वही दिन मुझे मेरे लिखने की वजह दे गया
जब भी मुझे कोई एहसास या ख्याल या दर्द मन के चक्रव्यूह से बाहर निकलना होता है मैं कलम उठा लेती हूं
कलम मेरी एकमात्र वो सहेली है जिससे कोई भी बात कहने में मुझे हिचक नहीं होती
और मन का बोझ, दिल का दर्द भी कम हो जाता है
हाँ इसीलिए लिखती हूँ
जब मेरे मन के भंवर में उमड़ते सवालों के जवाब नहीं मिलते तो कलम मेरी उलझनें सुलझाती हैं, मुझे नई राह दिखाती है, मुझे जीने की वजह दे जाती है
हाँ मैं जीने के लिए लिखती हूँ
सही कहते हैं लोग कोई किसी के बिना मरता नहीं
लेकिन अगर कलम मेरा सहारा न होती तो जिंदगी ज़िंदगी नहीं लगती
शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ मैं आज
मेरी इस कलम का और उस कोरे कागज का जिसने मेरी सही गलत, अच्छी बुरी, हर बात को अपनी शरण में लिया है
शुक्रिया,
शुक्रिया दोस्तों...(कलम और कागज़)...
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