फकत चाहा निगाहों से , उसे छूकर नहीं देखा
य'आनी ठीक से तुमने अभी मंज़र नहीं देखा ।।
सनम को आज देखा तो लगा मुझको कि अब तक तो
किसी को भी कभी मैं ने नज़र भर कर नहीं देखा ।।
इजाज़त हो अगर तुमको ज़रा में चूम कर देखूं
कसम से आजतक ऐसा परी-पैकर नहीं देखा ।।
मुहब्बत खेल जिस्मों का लगा सबको मुझे मिलकर
किसी ने रूह को मेरी कभी छूकर नहीं देखा ।।
गिरा जब आंख से आंसू समंदर कांप उठ बोला
कि ऐसा तो तबाही का कभी मंज़र नहीं देखा ।।
तू मेरे ख्वाब में आकर हुआ मेरा था कुछ ऐसे
किसी का बाद में मैं ने कभी हो कर नहीं देखा ।।
दियें जो दर्द हैं तुमने भरे "अब्सार" में हैं वो
सनम तूने कभी इक बार भी भीतर नहीं देखा।।
मंज़र-: दृश्य
परी-पैकर -: परी की तरह खूबसूरत
अब्सार-: आंखें
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहद खूबसूरत
Wa wa
शुक्रिया Indu ji
शुक्रिया Aravind ji
बेहद खूबसूरत
बहुत शुक्रिया 🙏
बहुत ख़ूब 👏 बेहतरीन ग़ज़ल 👌
Bahut shukriya Kabir ❤️
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