ग़ज़ल

बहर-: 1222×4

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Manu jain
Manu jain 17 Sep, 2020 | 1 min read
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फकत चाहा निगाहों से , उसे छूकर नहीं देखा

य'आनी ठीक से तुमने अभी मंज़र नहीं देखा ।।


सनम को आज देखा तो लगा मुझको कि अब तक तो

किसी को भी कभी मैं ने नज़र भर कर नहीं देखा ।।


इजाज़त हो अगर तुमको ज़रा में चूम कर देखूं

कसम से आजतक ऐसा परी-पैकर नहीं देखा ।।


मुहब्बत खेल जिस्मों का लगा सबको मुझे मिलकर

किसी ने रूह को मेरी कभी छूकर नहीं देखा ।।


गिरा जब आंख से आंसू समंदर कांप उठ बोला

कि ऐसा तो तबाही का कभी मंज़र नहीं देखा ।।


तू मेरे ख्वाब में आकर हुआ मेरा था कुछ ऐसे

किसी का बाद में मैं ने कभी हो कर नहीं देखा ।।


दियें जो दर्द हैं तुमने भरे "अब्सार" में हैं वो

सनम तूने कभी इक बार भी भीतर नहीं देखा।।


मंज़र-: दृश्य

परी-पैकर -: परी की तरह खूबसूरत

अब्सार-: आंखें


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Manu jain

ManuJain

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • indu inshail · 4 years ago last edited 4 years ago

    बेहद खूबसूरत

  • ARAVIND SHANBHAG, Baleri · 4 years ago last edited 4 years ago

    Wa wa

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    शुक्रिया Indu ji

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    शुक्रिया Aravind ji

  • Shubhangani Sharma · 4 years ago last edited 4 years ago

    बेहद खूबसूरत

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत शुक्रिया 🙏

  • Kabir Shukla · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत ख़ूब 👏 बेहतरीन ग़ज़ल 👌

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bahut shukriya Kabir ❤️

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