Ghazal

Bebahar ghazal

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Manu jain
Manu jain 02 May, 2021 | 1 min read
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ज़िक्र तेरे गुलाब का किया गुलशन में

बाग़ सारा महक उठा तेरी अंजुमन में 


हमारी ख़ुशबू हो तुम क्यों जुदा हो चले

गुल सदायें देते हैं अपने मन ही मन में


जहां देखते हैं बस तुमको ही देखते हैं

गलियों में बहारों में घटाओं में चमन में


अगली दफ़ा जब मिलो तो लौटा देना

मैं सॉंसें भूल आयी हूं तुम्हारे दामन में


मेरे घर की छत अब तक टपकती है

ऐसे बरसे थे यार तुम अब के सावन में


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Manu jain

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