बैठें हैं

एक बा-बहर ग़ज़ल

Originally published in hi
Reactions 1
673
Manu jain
Manu jain 08 Jul, 2020 | 1 min read

जाने कितने अश्क छिपाएं बैठें हैं 

जाने कितने.....दर्द दबाएं बैठें हैं


वो फिर हमसे मिलने आए ही नहीं

हम कब्र तक....आस लगाएं बैठें हैं


कि तू न रिस पड़े इन आंखों से मेरी

तेरे जिक्र को होंठों में सिलाएं बैठें हैं


ऐ ग़म ए रात........अब तो छट जा

कब से आंखों में चराग़ जलाएं बैठें हैं


हम ग़ज़ल लिखने की आस लिए

खुद को क़ाफ़ियों में उलझाएं बैठें हैं


1 likes

Published By

Manu jain

ManuJain

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Ektakocharrelan · 4 years ago last edited 4 years ago

    वाह 👏

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bahut badiya manu

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you ekta ji

  • Manu jain · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you so much babita ji

Please Login or Create a free account to comment.