जाने कितने अश्क छिपाएं बैठें हैं
जाने कितने.....दर्द दबाएं बैठें हैं
वो फिर हमसे मिलने आए ही नहीं
हम कब्र तक....आस लगाएं बैठें हैं
कि तू न रिस पड़े इन आंखों से मेरी
तेरे जिक्र को होंठों में सिलाएं बैठें हैं
ऐ ग़म ए रात........अब तो छट जा
कब से आंखों में चराग़ जलाएं बैठें हैं
हम ग़ज़ल लिखने की आस लिए
खुद को क़ाफ़ियों में उलझाएं बैठें हैं
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह 👏
Bahut badiya manu
Thank you ekta ji
Thank you so much babita ji
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