मैं एक औरत हूँ,
मैं अच्छी हूँ, या बुरी हूँ,
इस बात से अंजान हूँ,
लेकिन मैं एक औरत हूँ।
ज़िम्मेदारियों के तले, अपनी खाव्हिशों को मार देती हूं,
तो ये ज़माना मुझे संस्कारी और आदर्शवादी कहता है।
अगर मैं अपनी खाव्हिशों को पंख देती हूँ,
तो ये ज़माना मुझे मतलबी कहता है।
एक बात बता दूं सबको ये,
की मैं एक औरत हूँ,
मैं अच्छी हूँ, या बुरी हूँ,
इस बात से अंजान हूँ,
लेकिन मैं एक औरत हूँ।
कभी घर की बड़ी बेटी बोलकर,
तो कभी ज़माने की बात सुनकर।
ना जाने तुम कितने सपनो को त्यागने को कहते हो,
अगर मैं त्याग देती हूं,
तो मैं 'अच्छी'
नही तो ज़माने की नज़र में,
मैं तो वैसे भी बुरी हूँ।
अगर मैं अपने हक के लिए लड़ूँ
तो 'मर्दानी' कहते हो,
और वही मैं सब कुछ चुप चाप खामोशी से सह लू तो अबला नारी कहते हो।
ये कैसा इंसाफ है,ऐ ज़माने तेरा
की चार बात बोलकर,
बिना किसी को जानकर ,
तू मुझे अच्छा या बुरा बना दिया।
एक बात बता दूँ,
ऐ ज़माने ये तुझको,
मैं एक औरत हूँ,
मुझे खुद को जानने का मौका तो दो,
मेरे धर्म को, मेरे सपनो से जोड़कर मुझे अच्छा या बुरा मत बनाओ।
मैं एक औरत हूँ,
मैं अच्छी हूँ, या बुरी हूँ,
इस बात से अनजान हूँ,
मैं बस एक औरत हूँ।।
Comments
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बेहतरीन रचना
Bahut shukriya Sandeep ji 😊
वा ह
Thank you
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