ऐसा इस समाज में क्यों होता है किसी का झगड़ा हो और उस झगड़ा का असर किसी और पर हो मेरे संपर्क में एक बहुत प्यारी सी हंसती खेलती लड़की है उसको आज देखा तो पाया कि जो लड़की एक पल शांत नहीं बैठती वह भी शांत बैठी मिली एक कोने में नाराज आंखों में आंसू लिए ,
मजाक में करूं तो चेहरे पर मुस्कान तक ना आए बिल्कुल दुबकी हुई बैठी थी वह लड़की ।
" कितना अजीब है ना किसी चाचा हाथी चिड़िया को एक रोज शांत देखना "
मुझे भी आज ऐसा ही लगा उसके मन में क्या चल रहा है क्या हुआ नहीं मालूम ! लेकिन मैंने कोशिश की उससे बात करने की उसने बात को टालते हुए बोला ... दीदी कुछ नहीं हुआ ? मैंने भी सोच रखा था कि इससे सुनूंगी इसे क्या हो गया है इसको आज हुआ क्या है ।
मैं कुछ देर उसे अकेला छोड़कर अपने रूम में आ गई कुछ देर बाद मैं फिर उसके पास गई मैंने दोबारा पूछा तब रोती-रोती बोली कि मेरे पापा मम्मी का झगड़ा हो गया है और मम्मी , मामा के घर चली गई और मम्मी बात भी नहीं कर रही है मुझसे !
यह सुनकर मैं स्तब्ध रही मुझे फिर समझ नहीं आया मैं इसको अब क्या बोलूं कि यह रोना बंद करें और शांत हो जाए , मैंने उसके लिए कुछ नहीं कर पाया मैं असमर्थ हूं उसके दिल की भावनाओं को व्यक्त करने में क्योंकि मैं घटना सुनकर सहम गई और कुछ बोल भी ना सकी केवल उसे चुप कराया और उसकी बातों को समझा उस पर चिंतन किया लेकिन उसे सांत्वना देने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई ।
माता-पिता को किसी भी कदम को उठाने से पहले अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहिए यदि आज उसकी मां उससे बात कर लेती तो उस पर यह ना बीतती जो आज बीत रही है ...यथा ही बच्चों को भी हर कदम अपने माता-पिता के बारे में सोचने के बाद ही उठाना चाहिए।।
और "हमें अपने आप से यह एक वादा करना चाहिए कि हम कभी भी कोई भी गलत कदम नहीं उठाएंगे चाहे किसी भी तरह की घटना घटे" अगर मैं उस लड़की को उस समय जाकर नहीं समझाती या उससे बात नहीं करती तो वह आज कोई गलत कदम उठा सकती थी ।
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