मैं भी एक इंसान हूं
में एक किताब हूं,
कभी पढ़कर देखो।
में भी एक इंसान हूं,
कभी समझकर देखो।
यूँ ना देखो मुझे,
जैसे में कोई गैर हूं।
में भी एक हिस्सा हूं,
में भी एक किस्सा हूँ।
मत समझो मेरे मुस्कुराते चेहरे को देखकर, की में खुश हूं।
कभी मुझे समझकर देखो,
की कितना दर्द है, मेरे अंदर भी।
जताता नही हूं,
दिखता नही हूं।
में भी एक किताब हूं,
कभी पढ़कर देखो।
में भी एक इंसान हूं,
कभी समझकर देखो।
कभी तुम कुछ अपनी कहो,
कभी तुम कुछ मेरी सुनो।
खुले आसमान मे,
अब तो मुझे उड़ने दो।
में भी एक इंसान हूं,
अब तो मुझे जीने दो।
Comments
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बहुत ही शानदार और संदेशप्रद सृजन लिखती हैं आप दी।
बहुत ही शानदार और संदेशप्रद सृजन लिखती हैं आप दी।
बहुत आभार आपका संदीप जी 🙏
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