सीख का दरवाज़ा

लघुकथा.... सीख का दरवाज़ा

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Manu jain
Manu jain 14 Apr, 2020 | 0 mins read

मुसीबतों की पहेलियों से बचने लिए जब मैंने अपने आप को दरवाजे के पीछे बंद कर दिया तो उस दरवाजे के सामने भी एक दरवाज़ा पाया। पहले तो हिम्मत ही न हुई, मगर फिर अपने हालातों को सुधारने की चाह में आखिरकार वह दरवाज़ा खोल ही लिया और एकदम आश्चर्यचकित हो गया। उस दरवाजे के पीछे कई और दरवाजे थे। सभी दरवाजों के अपने अपने नाम थे, जिसमें प्यार, शांति, सफलता, आदि थे। यह देखकर मन खुशी से ज़ूम उठा। मगर जैसे हार बार होता है, यह खुशी भी पल भर के लिए ही सीमित थी क्योंकि वहां एक शर्त लिखी थी, जो यह थी कि इनमें से केवल एक ही दरवाजे के भीतर जा सकते है। बहुत सोच विचार करने के बाद आखिरकार मैंने एक दरवाज़ा चुन ही लिया। और वह दरवाज़ा था शांति का। उत्साह से जैसे ही मैंने वह दरवाज़ा खोला, तो अंदर का नज़ारा देखकर मानो मेरा सारा उत्साह ही ख़तम हो गया। जो सारी मुसीबतों से बचने के लिए मैं शांति के दरवाज़े की तरफ आया था, इस दरवाज़े की दुनिया में भी वही सारी मुसीबतें थी। पहले तो मुझे बहुत पछतावा हुआ और गुस्सा भी आया कि मैंने बाकी कोई दरवाज़ा क्यों नहीं चुना। मगर उतनी ही देर में उस दुनिया में मैंने कुछ अलग महसूस किया। मैंने वहां अपने आप को देखा, मगर कुछ बदलाव साथ। सच्चाई की दुनिया में जहां मैं हर चीज पर चिढ़ जाता था, उसके बदले मैं यहां सारी चीजें समझने की कोशिश कर रहा था और बिना गुस्सा किया उन्हें शांति से सुलझाने की कोशिश कर रहा था। यह देखकर मेरी आंखें खुल गई। "जितनी बड़ी मुसीबत, उसका हल उतना ही सरल होता है"। यह एक महत्वपूर्ण बात मैंने जानी। जैसे ही इस बात का एहसास हुआ मुझे, तुरंत ही सच्चाई के दरवाज़े में लौट आया मैं और फैसला किया की अब हर काम सोच समजकर शांति से करूंगा...

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