दरिया में वो साहिल दरकिनार ही है ,
दिल में वो है जो बेहिसाब ही है ।।
तर हवा सा मेरा उसका सफ़र ही है ,
ना जाने क्यों मेरी क़िस्मत बदबख़्त ही है ।।
यूं तो हर शख़्स अकेला है भरे संसार में ,
फिर भी दिल के मुकद्दर में तन्हाई ही है ।।
पुराने दरख़्तों का आलम क़फ़स सा है ,
कि जिसमें मय की महफ़िल होती ही है ।।
जिंदगी तिश्नगी के गिर्दाब में कैद़ ही है ,
आराईश आब-ए-चश्म में छिपे ही है ।।
( तर - नमी युक्त ; बदबख़्त - अभागा ; दरख़्त - पेड़ ; क़फ़स - पिंजरा
तिश्नगी - इच्छा ; गिर्दाब - भंवर ; आराईश - सजावट ; आब -ए- चश्म - आंसू )
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