अब अगली छूट जो हमे अरूज़ में मिलती हैं
वो हे इजाफत की
इजाफत -इसके द्वारा दो शब्दों को अंतर सम्बंधित किया जाता है जैसे ‘नादान दिल’ को ‘दिल ए नादाँ’, कहा जा सकता है
दिल का दर्द’ को ‘दर्द-ए-दिल’
खुदा का जिक्र को 'जिक्र-ए-खुदा'
माशूक का राज़ को 'राज-ए-माशूक'..
Isme hume ulta padhna padta he
इजाफत दो प्रकार से होती है
1- इजाफत-ए-मक्लूबी
2- इजाफत-ए-खारिजी
इजाफत-ए-खारिजी -जब इजाफत में दोनों शब्दों के बीच हर्फ़-ए-इज़ाफत अर्थात 'ए' हर्फ़ लगाते हैं तो उसे इज़ाफत ए खारिजी कहते हैं
इजफत-ए-खरिजी में तीन प्रकार के शब्द समूह को योजित किया (जोड़ा) जा सकता है
(|) का, के, कि
(||) विशेषण
(|||) इस्तेलाम
(1) का , के , कि
Jese दरख़्त ए नीम
मतलब नीम का पेड़
(2) विशेषण
इस में हम कोई विशेषता बताने के लिए इजाफत लगाते हैं
"पुरदर्द नग्मा " में नग्मा संज्ञा है और "दर्द भरा" नग्मा का विशेषण है और यह इज़ाफत द्वारा होता है - नग्मा-ए-पुरदर्द
(3) इस्तेमाल
जब केवल सूचना देने के लिए इजाफत का प्रयोग करते हैं तो उसे इस्तेलाम कहते हैं
"शहरे लखनऊ"
इज़ाफत में 'ए' को ''हर्फ़-ए-इजाफत'' कहते हैं
||- इजाफत में पहले शब्द को हर्फ-ए-उला कहेंगे
|||- इजाफत में दूसरे शब्द को हर्फ़-ए-सानी कहेंगे
दर्द ए दिल में
ए ''हर्फ़-ए-इजाफत''
दर्द हर्फ-ए-उला
दिल हर्फ़-ए-सानी होगा
मात्रा गणना के नियम :-
हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न 1 होता है
1 अगर पहले शब्द का आखरी अक्षर व्यंजन
यदि लघु मात्रिक हो तो हर्फ-ए-इजाफत जुडने के बाद भी लघु मात्रिक ही रहता है
जैसे - माशूक का राज़" इज़ाफत के बाद "राजे माशूक" हो जाता है इसमें राज़ का वज्न २१ है शब्द का आख़िरी व्यंजन अर्थात ज़ लघु मात्रिक है इसमें 'ए' जुड कर 'ज़े' होता है परन्तु यह फिर भी लघु मात्रिक ही रहता है और राजे माशूक का वज्न है २१ २२१ होता है
2 अगर पहले शब्द की आखरी मात्रा दो व्यंजनों के जोड़ से शास्वत दिर्घ हे तो
इजाफत लगने से ये व्यंजन दिर्घ नहीं रहते
जैसे - नादान दिल' इज़ाफत द्वारा 'दिले नादाँ' हो जाता है इसमें दिल शब्द दो लघु व्यंजन के योग से दीर्घ मात्रिक है अर्थात इसका वज्न २ है मगर 'ए' जुड कर यह दिले हो जाता है और 'ले' स्वतंत्र लघु होता है इस प्रकार इसके पहले का "दि" भी स्वतंत्र लघु हो जाता है और दिले नादाँ का वज्न 11 22 होता है
3 आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है
साया ए दीवार (दीवार का साया) - 22 1 221
दर्दे दिल 21 2 होता है
इश्क के काबिल" - काबिले इश्क
अगर सरल भाषा में देखे तो
1 ए व्यंजन के साथ जुड़ेगा पर उसे गिनती में नही लाएँगे
2 ए शास्वत दिर्घ व्यंजन के साथ जुड़ के उनको तोड़ देगा
और 2 का 11 बना देगा
पर दोनों में ही इजाफत को हम नहीं गिनेंगे उसका उच्चारण होगा पर मात्रा गणना में उसे नहीं लाएँगे
3 अगर आखिर स्वर हे तो तो इजाफत की गिनती अलग से ए 1 होगी !!
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