किसी भी विधा को लिखने के लिए basic rules होते हैं वैसे कई सारी ऐसी रचनाएं होती है जिन्हें केवल भाव को ध्यान में रखकर लिखा जाता है लेकिन कुछ रचनाएं ऐसी भी होती हैं जिनके लिए कुछ नियम आधारित किए जाते हैं उन नियमों के अनुसार ही रचना लिखी जाती है और बिना नियम को ध्यान रखे वह रचना नहीं लिखी जा सकती ।
इसी तरह ग़ज़ल उर्दू भाषा की एक विधा है ग़ज़ल के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं उन नियमों के आधार पर ही एक ग़ज़ल तैयार होती है । कई रचनाकार ऐसे भी जो नियमों को ध्यान में ना रखते हुए किसी रचना को लिख कर उसे ग़ज़ल का नाम दे देते हैं ।
ग़ज़ल किसे कहते हैं?
जब शेर का समूह, एक निश्चित मात्रा के तहत काफिया और रदीफ के नियम अनुसार लिखा जाए, उसे ग़ज़ल कहते हैं।
ग़ज़ल में बहर का मुख्य रोल होता है जिसके बिना ग़ज़ल लिखना नामुमकिन है ग़ज़ल लिखने के लिए निम्न चरणों को ध्यान में रखा जाता है :-
मिसरा - line पंक्ति
शेर - दो मिसरों को मिला कर शेर बनता है
रदीफ़ - ग़ज़ल के हर शेर के आखिर में आने वाला शब्द या वाक्य जो पूरी ग़ज़ल में एक सा होता हैं
काफिया - ग़ज़ल के हर शेर एक ही तुकबंदी (rhyme) में लिए जाने वाले शब्द को काफिया कहते हे
काफिया और रदीफ़ ही ग़ज़ल की जान होते हैं
मिसरा - line पंक्ति
मिसरा ए उला - शेर की पहली पंक्ति
मिसरा ए सानी - शेर की दूसरी या आखरी पंक्ति
मत्ला- ग़ज़ल का पहला शेर जिसमे काफिया और रदीफ़ दोनों ही मिसरों में इस्तेमाल होता है
मक़्ता -ग़ज़ल के आखरी शेर जिसमे शायर का तक्खलुस (pen name) आता है इसे मक़्ता कहते हैं
अरूज़ - ग़ज़ल की व्याकरण
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