ग़ज़ल के क़ाफिया और रद़ीफ का परिचय

#10articlechallenge chapter 2

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Manu jain
Manu jain 06 May, 2020 | 1 min read

काफिया किसी एक शब्द के समान तुक वाले शब्दों को कहा जाता है जैसे

" रहना "शब्द के काफिया -: " सहना , कहना , बहना " आदि होते हैं ।

काफिया दो तरह के होते हैं।

१. स्वर काफिया

२. व्यंजन काफिया

१. स्वर काफिया:-

वैसा शब्द जिसका अंत स्वर उच्चारण से हो।

जैसे: आ, ई, ऊ, ए, ओ something like that.

Example:

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।

Isme dekhiye 3 Kafiya h

पिघलनी: पिघ+ल+अनी

निकलनी: निक+ल+अनी

जलनी : ज+ल+अपनी

अनी एक स्वर काफिया है क्योंकि ये "ई" उच्चारण पर खत्म हैं।

व्यंजन काफिया:-

किसी कली ने भी देखा न आंख भर के मुझे,

गुजर गई जरस-ए-गुल उदास कर के मुझे।

(जिस काफिया का अंत व्यंजन उच्चारण से ह़ो वो व्यंजन काफिया है)

रद़ीफ -:

क़ाफिया के बाद आने वाले शब्दों को , जिसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है उन शब्दों को रद़ीफ कहते हैं ।

जैसे मान लीजिए हमारी ग़जल का शेर इस प्रकार है :-

बन पंछी पिंजरे में रहना क्या सही है ,

दिल टूटा है मिरा यह कहना क्या सही है ....

इसमें " रहना "और " कहना "ये दोनों काफिया है और इसके बाद "क्या सही है" आया है , यह रद़ीफ होगा ।

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