*"झंडा ऊँचा रहे हमारा"*
"सर एक झंडा ले लो न प्लीज" ट्रैफिक में फंसे , खीजे हुए रमेश के कार के पास एक बच्ची हाथ में कागज के कई झंडे लिए खड़ी थी। स्वतंत्रता दिवस और उसपर से लोगों के ऑफिस जाने की बाध्यता ने चौराहे पर जाम खड़ा कर दिया था।
"प्लीज सर एक झंडा ले लो" इस बार बच्ची की आवाज़ ज्यादा बुलंद लगी । अनमने से रमेश ने एक झंडा ख़रीद लिया और उसे साइड मिरर के पास लगा दिया। रमेश हर पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को ऐसा करता था। फिर पर्स से दस रुपये निकाल कर बच्ची को दिया। बच्ची ने पैसे लेते ही जय हिंद कहा। रमेश 'जय हिंद' बोल नहीं सका चूँकि तब तक ट्रैफिक में संकेत हरा हो गया था।
अभी रमेश ऑफिस पहुँचने ही वाला था कि हवा का झोंका आया और झंडे को बस्ती की ओर उड़ा ले गया । रमेश को देर हो रही थी । इसलिए उसने इस बात को नजरअंदाज किया।दो बजे के करीब जब रमेश ऑफिस से लौट रहा था तो उसने देखा कि बस्ती के बच्चों ने एक बड़े से डंडे से उस कागज़ के झंडे को बांध दिया था। फिर डंडे को ज़मीन में गाड़कर उसके चारों ओर फूल डाले गए थे। रमेश अपनी गाड़ी रोक कर ये सब देख रहा था। अधनंगे बच्चों ने "जन गण मन" गया ये और बात थी कि कई बार अशुद्धियाँ साफ़-साफ़ सुनाई दी। फिर बच्चों ने झंडे को सलामी दी। और फिर उन्होंने "झंडा ऊंचा रहे हमारा" गाना शुरू किया। वापस कार स्टार्ट करते हुए रमेश को दिखा की बच्चों ने ईंट के महीन बुरादे से चक्र बनाया है। ये चक्र आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,हमेशा। अब जब कार दूर निकल गयी थी अब भी रमेश के कानों में गूँज रहा था "झंडा ऊँचा रहे हमा
रा"।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
nicely written😃
Thanks yashika ji
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