जहाँ तुम जाते

एक मोटिवेशनल कविता

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 10 Nov, 2020 | 1 min read

मन का परिंदा

उड़ता ही जाए

रुके नहीं ,झुके नहीं

चाहूँ मैं ठहराव कोई

और वह चंचल मचलता

सीमाएं तोड़ता

उड़ता ही रहता है

सोचता हूं कि

रोक लूँ  

मन करता है भी तो

ग्लानि से ज्यादा डर

डूब ना जाऊं अपने भँवर में

आओ मन फूले मेरे संग

तो जागो मै ना भागूँ,

तुम भागो

पाने की चाह मर गई है

मैं चाहता पाना

नया आकाश नया विश्वास

बनाने हैं नए आयाम

वक्त तो लगेगा ही

चलेगा ही वक्त

मैं तो संभल जाऊं

रुको रुको

मैं भी चलता हूं

जहां तुम जाते....


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Dr. Pratik Prabhakar

Drpratikprabhakar

Comments

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  • Sonnu Lamba · 4 years ago last edited 4 years ago

    Wahh

  • Dr. Pratik Prabhakar · 4 years ago last edited 4 years ago

    सोनू जी बहुत आभार

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