कमल की पंखुड़ियों पर
जैसे फिसलता ओंस कण
फितरत तेरी इत्र जैसी
चंचल है तेरा मन
संग तेरे पवन चले
वादियों में महक घुले
फूल सी निराली तुम
तुमसे ही तो है चमन
राग द्वेष मिथ्या लगे
देखूं जो मचल जाये
लगे वक़्त दे ईश्वर ने
है किया तेरा सृजन
मादक मोहिनी क्या कहूँ
अब तुझे देखता मरुँ
बोलो तो सब वारूँ
सब कुछ तन, मन ,धन
Comments
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Nice
बहुत खूब
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