आज से , अभी से
काहे का रोना है?
घुटने तक पहुँचा मैं।
अब उठ खड़ा होना है।
दाग लगे जो दामन पर
कौंधता कुछ जो सीने में
कलुषित जो वक़्त था
नीर से उसको धोना है।
तुमने जो सुलाया बहुत हुआ
मय, मदिरा दे दे के मुझे
प्रभात हो गयी है, समझे!
न मुझको अब सोना है।
बादल गहरे हो चाहे जितने
रंग तो सूरज से होता है।
अपना देखो मेरा वक़्त नया ,
नया ख़्वाब पिरोना है
।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
जी बहुत धन्यवाद
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