मोबाईल पर बात करती मेनका अचानक से फूट फूट कर रोने लगी। इतनी आसानी से रोहन ने कैसे उससे ब्रेकअप करने का मन बनाया होगा।
कैसे वह पहले साथ सात-सात जन्मों तक जीने मरने की कसमें खाता था पर अब क्या हुआ, अगर उसकी नौकरी नहीं लगती , कोई परीक्षा पास नहीं कर पाता तो उसकी मैं जिम्मेदार हूँ?
यह सब सोंचती हुई मेनका ट्रेन में अपनी बर्थ पर बैठी आसूँ बहा रही थी। उसे ऐसा करते देख सामने की बर्थ पर बैठी आंटी को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जैसे ही उनकी नजर मेनका से टकरायी मेनका ने अपने आँसुओं को पोछ मुस्कुराने का नाटक किया।
पर आंटी ने पूछा
"क्या हुआ बेटा, जो हुआ वो बताओ ?"
उनका अपनापन देख मेनका से रहा न गया , वह सुबक सुबक कर रोते हुए सभी बातें एक सांस में कह सुनाई।
तब आंटी ने कहना शुरू किया , प्रेम में कई ऐसे मौके आते हैं , जब आप उसमें न डुबो तो ही भला हो, डूब गए तो फिर किनारे नहीं मिलते, किनारे मिल भी गए तो कोई नहीं होता किनारे पर खड़ा आपके लिए । इसी लिए प्रेम में प्रवाहमान बनो, चंचल बनो, प्रेम स्थायित्व जरूर माँगता पर स्थायी तभी बनो जब पूरी तरह संयमित हो , सशक्त हो। ये सब बातें तो मेनका के दिमाग़ के ऊपर से जा रही थीं।
तब आंटी ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे बाल्यकाल में ही उनकी शादी कर दी गयी थी एक ऐसे व्यक्ति से जिसे वो जानती भी नहीं थी और कैसे उन्होंने उससे ही इतना प्यार हासिल किया कि अब जीवन के कोई अरमान बाकी न थे। एक बार अंकल से उनका झगड़ा हो गया क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि वो उन्हें महत्व नहीं देते पर एक घर में रहते कितने दिनों तक नाराज़ रह सकते, फिर प्रेम बढ़ता गया और बच्चों के जन्म के साथ संबंध प्रगाढ़ होते गए। प्रेम रोटी तो नहीं दे सकता पर रोटी बनाने वाली जरूर दे सकता है।
यह सुनकर मेनका के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी। वो समझ गयी थी कि प्रेम में यदि जीतना है तो कभी हार मान लेना भी होगा। कभी कभी प्रेमी की जीत पर खुश होना ही होगा तो कभी उसकी हार का मातम भी मनाना होगा , तभी प्रेम सफल होगा।
अंकल जो वॉशरूम गए थे , वापस आ गए। उन्होंने पहले आंटी को चादर ओढाई और फिर खुद एक चादर ओढ़ के लेट गए।
मेनका खुद को यूँ ही भविष्य में देखना चाहती थी आंटी की तरह । उसने तय किया कि वह कल फिर अपने बॉयफ्रेंड को कॉल करेगी और माफ़ी माँगेंगी या यह संबंध तोड़ लेगी । और कब हवा के झोंके ने उसे सपनों के आग़ोश में लिया पता ही नहीं चला।
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