"अलविदा बीस"
तुम बताओ बीस
क्या इक्कीस में भोर होगा
या तुम्हारे जैसे
ही फिर वर्ष घनघोर होगा।।
क्या फिर लोग
घरों में डरे- सहमे ही रहेंगे
या पाएँगे नभ खुद के
अब न कोई भय को सहेंगे।।
बताओ बीस मुझे
क्योंकर याद करे तुम्हें हम
कितनों को ग्रास बनाया
अनेक आँखे हैं अब भी नम।।
मैंने बताया आईना
जो मानव स्वयं में लीन थें।
मिलवाया मैंने उनको
सच से,जो औरों से भिन्न थें।।
परिस्थिति जो भी
हो,सिखाया मैंने है मुस्काना।।
चाहे कोई वर्ष आये
मेरा सफ़ल हुआ है सिखाना।।
मैंने अलविदा किया
बीस अब भी मुस्कुरा रहा।।
इक्कीस का दामन थामें
कुछ बेहतर मैं मना रहा।।
स्वरचित मौलिक
- प्रतीक प्रभाकर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice
वाह
Wahh
शुक्रिया🙏💐
उम्दा रचना
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