एक दीये की झिलमिल लौ
निहित ताक़त कि जलाये सौ
चाहें हवा का रुख़ ही बदले
फिर भी लौ, रहती है संभले।।
तेल के हर कतरे का उपयोग
बस यही तो उस लौ की सोंच
मिटाना तिमिर स्व के अंत तक
गाथा रहे न रहे अमर अनंत तक
बस एक ही लक्ष्य, एक दिशा है
मन में उसके न कोई अंदेशा है।
दूजों की खुशी को जल जाना
बस यही धेय्य को उसे अपनाना।।
बंधु हमने उससे सीखा कितना
आओ लक्ष्य अपनायें लौ जितना।
लड़ेंगे और जीते सभी अंत तक
गति हो लौ के प्रकाश जैसे अनंत।
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