रश्में नूँ रंगदा

रश्में नूँ रंगडा चाहिदा

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 22 Sep, 2021 | 1 min read

"रश्में नूँ रंगदा"

       

हर रश्में नूँ रंगदा चाहिदां।

हर कश्में नूँ बंधदा चाहिदां।।

भीनी खुशबू में भींग जावा

जे मत्थे मैनूं तिलक लगावा

जिंदगी सफल होते दिक्खे

बड्डे आगे शीश झुका चाहिदां।।

रंग जावा होली दे रंग नूँ

कुटुम्ब बनावा सारा जग नूं

नमस्ते करूँ बिन सोच्चे

देस में जन्मा,मर जाना चाहिदां।

मुण्डन,यज्ञोपवीत जे होया

रश्में थे जिन बीच मैं खोया

हवन, पूजन अरदास ते डूब।

इक बार नानक नूँ पाना चाहिदां।।


स्वरचित एवं मौलिक-प्रतीक प्रभाकर


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