पढ़ाई की फीस में उसे कुछ छूट मिल गई थी क्योंकि पिछले इंट्रेंस में उसके नंबर अच्छे थे ।एक दो टेस्ट्स के बाद ही वह टॉपर्स की लिस्ट में शुमार हो गया। उसका खोया आत्मविश्वास फिर से लौट आया था ।आत्मविश्वास से बढ़कर कोई हथियार नहीं है और इसी के बल पर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है।
अब कोई बाधा उसे रोक नहीं सकती थी । उस वर्ष नीट मैं उसनेे पूरे भारत में टॉप दो सौ में स्थान पाया। कॉउंसलिंग के पश्चात उसे दिल्ली की मेडिकल कॉलेज भी मिल रही थी पर उसने घर के पास के ही कॉलेज में पढ़ना ठीक समझा औऱ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया।
प्रशांत को याद है कैसे उसने पेपर में छपे रामू के इंटरव्यू से उसके बारे में सच जाना था। अखबारों में छपी इंटरव्यू की तस्वीर को उसने व्हाट्सएप ग्रुप में डाला था और साथी भी हतप्रभ थे। पूरे प्रदेश की अखबारों में रामू के माता- पिता के साथ तस्वीर छपी थी और शीर्षक था" गुदड़ी के लाल ने किया कमाल"।
प्रशांत किस मुंह से बात करे। प्रशांत उस बार भी सफल न हो सका ।उसने एग्रीकल्चर कॉलेज में दाखिला ले लिया । जब कोई मित्र परीक्षा उतीर्ण हो जाता है तो उसे लगता है कि फेल हुए साथी से फ़ोन पर बात करने से विफल साथी सोंचेगा कि अपनी शेखी बघारने के लिए फ़ोन किया होगा।और फ़ेल साथी को लगता है कि पास साथी अब उससे बात नही करेगा। ये दोनों ही सोंच दोस्ती को खत्म करने पर आमदा हो जाते हैं। पर दोस्ती तो निभाई जाने वाली चीज है , ये ना तो एक दिन में शुरू होती है न एक दिन में खत्म।
अभी आंखों के सामने यादें तैर ही रही थी कि प्रशांत की नजर फिजिक्स की किताब की कवर पर परी जहां पर रामू का नंबर लिखा था और रामू के नाम के साथ ही लिखा था "डॉक्टर प्रशांत"। ये देख प्रशांत के दिल में एक लहर सी उठी जो रुकती मालूम नहीं होती थी।
प्रशांत ने नंबर मिलाया और कॉल लगाई । कॉल लग गई ।उधर से आवाज आई
"कौन बात कर रहे हैं ,जी ?"
प्रशांत इधर मुस्कुरा रहा था ।उसने रामू को माँ की बीमारी के बारे में बताया । रामू ने उसे मदद का दिलासा दिया । और भी कई सारी बातें हुईं । दोनों ने कई यादें साझा की। तभी प्रशांत को पता चला रामू अभी भी एक कोचिंग में दो घंटे पढ़ाता है ताकि अपना खर्च खुद उठा सके।
अपनी मां को डॉक्टर से दिखने लखनऊ ले जाते हुए प्रशांत रास्ते में सोच रहा था प्रण करने से कुछ भी हासिल हो सकता है और चाहे आप किसी भी माध्यम से पढ़ते हो , चाहे आप किसी भी परिस्थिति से आते हो ,अगर काबिलियत होती है ,मेहनत करते है तो सफलता जरुर मिलती है ।प्रशांत मन ही मन सोंचने लगा जब रामू पास हो सकता है तो मैं क्यों नहीं। उसने फिर से एक बार मेडिकल इंट्रेन्स की तैयारी करने का मन बनाया।
अब जब प्रशान्त मेडिकल कॉलेज पहुंचा था रामू उसके आगे सफ़ेद एप्रन (कोट)में खड़ा था और इसी कोट को रामू ने अपने मेहनत ,लगन और अडिग आत्मविश्वास से कमाया था ।तब प्रशांत की नजर कोट पर लगे बैच पर पड़ी ,जिसपर अंकित था" डॉक्टर रामू"।
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