पढ़िए मेरे यात्रा वृतांत
" गैंग्स टू गंगटोक"
का एक अंश
"केहि भेष में भगवान"
रोज हम कुछ नया सीखते हैं। सीखना भी चाहिए क्योंकि कहा भी जाता है कि जिस दिन हमने सीखना छोड़ा , उसदिन से हमने जीना छोड़ा।पहले आदमी घुमंतू होता था, कंदरा में रहता था, फल फूल खाता था। हर रोज कुछ नया बनाता था। आदमी सभ्य होता गया पर घूमने की ललक उसमे से नही गयी। हम सबों में कहीं न कहीं घुमकड़ी है जो कभी न कभी झलक ही जाती है चाहे वह कोई ट्रिप ही क्यूँ न हो।
मैं पिछले साल सिक्किम गया था। सेवन सिस्टर्स में से एक राज्य, ईश्वर का घर , सुंदर वादियाँ , अच्छे लोग, शांत वातावरण, झरने , बारिश, मोमोज़, बर्फ, नीले फूल , काले बादल , घने जंगल ...
हमने एक दिन माउंटेन साइकिलिंग का प्लान बनाया था। टीवी पर काफी रोमांचक लगता था साइकिलिंग माउंटेन पर। परन्तु सच मे करना...
हमारे गाइड लकपा शेरवा ने हमे गियर वाली साइकिलें दीं। हम पांच लोग थे और हमे लगभग दस किलोमीटर का लंबा सफर तय करना था।गियर वाली साइकिल हमने पहले कभी नहीं चलाई थी। हमारे गाइड ने हमें सिखाया , हेलमेट भी दी। हममें से कुछ एक दूसरे को देख मुस्कुरा रहे थे ।
अब बारी थी टेस्ट राइडिंग की हमें कुछ ऊंचाई तक साइकिल ले जाना था । हम में से सभी ने धीरे-धीरे लक्ष्य को प्राप्त किया परंतु हम काफी थक चुके थे । हम सोचने लगे थे कि क्या हम इतना लंबा सफर तय कर पाएंगे । अगर साथी अच्छे हो और मौसम सुहाना हो तो सफर का मजा भी आता है । सिक्किम में हम गंगटोक में थे । मार्ग टेढ़े -मेढ़े जलेबी जैसे होते हैं , हमें ऊपर चढ़ना था ।
हम लोग अभी दो ऊंचाई की चढ़े थे कि दिल जबाब देने लगा था और सभी को सर्दी में भी पसीने आने लगे थे ।परंतु सबको ऊपर पहुंचना था लक्ष्य के करीब हम सबों ने तय किया कि हम सब आराम से धीरे-धीरे ऊपर चलेंगे परंतु ऐसा हुआ नहीं । प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई और हम सब प्रतिद्वंदी। मेरी साइकिल की चैन उतर गई मैं चैन चढ़ा रहा था कि मेरे साथ ही काफी आगे निकल गए रास्ते में एक तरफ पहाड़ था तो दूसरी तरफ खाई और बीच-बीच में आते जाते वाहन ।
अभी मैं दो ऊंचाई और चढ़ा था कि मेरा शरीर मुझे जवाब देना देने लगा मेरा दिल मुझसे कह रहा था बस अब और नहीं अगर ज्यादा जबरदस्ती करोगे तो धड़कना छोड़ दूंगा मुझे जोर की प्यास लग गई । मैंने देखा पानी का एक नल लगा था पर पानी नहीं आ रहा था । तभी मैंने एक बुजुर्ग महिला को देखा जो बर्तन धोने के पास आ रही थी । मैंने उससे इशारे में पानी पिलाने के लिए को कहा परंतु पास के झोपड़ी में चली गई ।
मैंने सोचा कैसे लोग हैं ,यहां के?? दिमाग में गूंज रहा था "कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं ,बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा"
पर ठहरिये वह लौट आई उसने नल के मुंह पर कपड़ा बांधा और नल स्टार्ट किया । फिर एक कटोरी मंज कर मुझे पानी दिया मैंने चार कटोरी पानी पी। मैं धन्य हो गया । शायद मैं भगवान को ही देख रहा था । मैंने उसे धन्यवाद कहा। शायद वह समझ गई होगी।
फिर दिमाग ने कहा अब ऊपर जाना है । मेरे मित्र दो मार्ग ऊपर दिख गए । मुझे मार्ग में दो बार उतरी चैन चढ़ानी पड़ी । पर मैं ठहरने वाला कहाँ था??
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