उहापोह

जिंदगी की

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 27 May, 2022 | 0 mins read

यह जीवन ही है

चलना अगणित कदम

कभी धूप में कभी छाँव में

कभी शहर तो कभी गाँव में

कभी शीत में ,कभी झंझावात में

कभी गाते हुए, कभी रोते हुए

लेकिन चलते जाना है

रुक गए तो आख़िरी क्षण

नहीं रखना कोई शिक़वा ख़ुद से

उहापोह हो ख़्याल में दूर करो

कभी दूजों से तो कभी खुद से लड़ो

तो पा जाओगे आकाश

जहाँ से सब छोटा दिखेगा।


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Dr. Pratik Prabhakar

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