हो गए काफी दिन
दिखे न तुम, न मैं
है गर्मी बहुत पर
क्या बर्फ सा पिघलना है?
रगों में विद्युत है ही
कौंधता कुछ सीने में
पागल हो न जाये अब
मन को निखरना है
मैं तो आ जाऊं राह पर
क्या निकलोगे छांह से
मैं तो चाहता मिलना
क्या तुम्हें मिलना है??
क्या तुम्हें मिलना है?
हो गए काफी दिन
दिखे न तुम, न मैं
है गर्मी बहुत पर
क्या बर्फ सा पिघलना है?
रगों में विद्युत है ही
कौंधता कुछ सीने में
पागल हो न जाये अब
मन को निखरना है
मैं तो आ जाऊं राह पर
क्या निकलोगे छांह से
मैं तो चाहता मिलना
क्या तुम्हें मिलना है??
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