हो सिर्फ उत्थान चहुंओर
न दिखे पतन कोई हाल
हर दिन आशा से लिप्त
हर पल हो बड़ा कमाल
साथ छोड़ आलस्य भागे
तज दें अवनति-जंजाल
पा जाएं हर चाह सभी ही
न रहे किसी को मलाल
साकार स्वप्न,अग्रणी कदम
बाधा से जीतें,ले ढाल
हर दिन पर-स्व की मदद हो
निर्मल रहे सदा ख्याल
हे अग्रज, बंधु,मित्र शुभेक्छु
गले हो जीत का माल
मैं प्रतीक देता शुभकामनाएं
मंगलमय हो यह साल
स्वरचित एवं मौलिक -प्रतीक प्रभाकर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.