संवेदना का अकाल

संवेदना का अकाल

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 19 Apr, 2021 | 1 min read
Relation Human



संवेदनाओं का है जग में अकाल

जग जा मनुज नेत्र खोलेंगे त्रिकाल


संबंधों में आती कैसी अब दुराई है

मेघ आंखों से बहाते मात-पिता के 

देख इनको मानवता भी शर्मायी है

ऐसे मनुज न बन ,जो है कंगाल

संवेदनाओं का है जग में अकाल।


गिरते है तो हमें उठता कोई नहीं

हँसते वो इंसानियत भी सोई रही

लेते फ़ोन से जो तस्वीरें वीडियो

अब शर्माकर झुका अपना भाल।

संवेदनाओं का है जग में अकाल।


सांस की हवा कहीं पानी है गंदा

तेरा न खत्म हो आरोप का धंधा

याद रख हिसाब होता सबका ही

आज चाहे खुशफहमी ले तू पाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल


वक़्त पर कोई भी पहचानता नहीं

मानव धर्म कोई भी मानता नही

याद रख दिन देखने सबको यही

आज कोई खड़ा,कल तेरा हो हाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल।


उजड़े चमन देख कर हँसनेवाले

तू कभी बन के तो देख रखवाले

जो अक्षुण्ण खुशी पाओगे जग में

सफल पाना होगा मानव का खाल

संवेदनाओं का जग में है अकाल।

जग जा मनुज नेत्र खोलेंगे त्रिकाल

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Dr. Pratik Prabhakar

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