लटकते किसान

किसान के दुर्दशा की विवेचना

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 13 Dec, 2020 | 1 min read
Poem


छाले पड़े हैं पग में जिनके

पसीने की बूंदे है माथ।

आप ही धरा के सच्चे सेवक

अन्नधन के आप ही नाथ ।।


रोज सवेरे पग में मृदा है 

कमर पर बीज की है गांठ

हैं श्रमजीवी ,धरा के पुत्र

कुदाल ,हल है जिनके हाथ।।



सरकारों की आंखें न भींगे

दिलों है पत्थर ,है काठ।

कर्ज में डूबे किसान बंधु 

जोहे हैं अनुदान की बाट।।



सल्फास की गोली अब नहीं 

लटको ना शाखा से भ्रात।

उदर की ज्वाला शांत आपसे

ख़ड़े - लड़ेंगे हम सब साथ।।



       


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Dr. Pratik Prabhakar

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