"शहीद"
"ये बारिश कब रुकेगी?"मैंने कई बार सोचा है।शायद आप भी सोचते होंगे।
काफी पहले एक शेर पढ़ा था- 'शहीदों की मजार पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही आखरी निशाँ होगा।'
मतलब आज समझ आया।
सी आर पी एफ की टुकड़ी पर कल हमला हुआ पुलवामा में। 42 सैनिक शहीद हुए। भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। एक शैलाब सा दिल में उठा भारतीयों के ।
सैनिकों की रक्तरंजित तस्वीरें दिल को दुखाने लगी। हर किसी के दिल में कसक थी उन जवानों के लिए । अगर ये राष्ट्रवाद है तो, है हम राष्ट्रवादी।
आज हम में से कुछ लोगों को सी आर पी एफ गया जाने का अवसर प्राप्त हुआ। पहले हम सी. आर .पी .एफ गया के गेट से गुजरते वक़्त हमेशा सोचते थे कि अंदर क्या होगा?
पर आज सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य हम गये ,पर चारो ओर सन्नाटा था। पता नहीं हम क्या ढूंढने जा रहे थे वहां??
शायद खोये सपने , बिछड़े भाई , बिलखती माँ का बेटा , रोते बेटे का पिता, बाप की आखरी उम्मीद , किसी का प्रीत , और पता नहीं क्या क्या??हर तरफ उदासी थी , अपनों को खोने का गम था और सीने में एक टीस थी कि कब तक ये सब देखना होगा? सामने एक टोपी थी सैनिक की जो बन्दूक की नोंक पर राखी थी । यह प्रतीक था उन सैनिकों का जो वतन पर मर मिटे।
हम बारी बारी से श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे थे । मौसम भी साथ नहीं देना चाहता था , बारिश हो रही थी हल्की हल्की मनो रो रहा था आसमान ।
और आँखे दिखी मुझे बारिश वहाँ भी थी इतनी हल्की कि देखने के लिए बगल में होना जरूरी था। मेरे बगल में था कारगिल के युद्ध में शहीद जवान का पुत्र।मैं भी चुप था और सब भी । आखिर कब तक ये बारिश रुकेगी??
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