Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 28 Oct, 2020
सरेआम इश्क
अपनी दिन अपनी रातों को तेरे नाम करता हूं । हां इश्क है तुमसे यह कबूल सरेआम करता हूं ।। मैं यहां तुम वहां अकेले भूले ना भुलाए दिलों के मेले क्या करूं बयां की मोहब्बत है सुबह शाम करता हूं ।। तेरे आंखो का काजल हो जाता था घायल रूठे हुए अपने मिलन को नित सलाम करता हूं ।। वर्ष कमतर ही तो है प्रेम जीवन भर है यह शाम , सुबह क्या? जीना तेरे नाम करता हूं ।। रूकती चलती सांसे मेरी बढ़ती मचलती बाहें तेरी हया का आलिंगन कर मुझे बदनाम करता हूं।।

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by pratikprabhakar

28 Oct, 2020

सरेआम इश्क

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