Dr. Pratik Prabhakar
27 Oct, 2020
कल्पना के पंख
साथियों बारी आई अब अपनी
कल्पना को पंख दो
जो अवनति चाहते सदा तुम्हारी
मचा उनमें हड़कंप दो।।
जगाओ सफलता की भूख ख़ुद में
होंठों पर विजय- शंख हो।।
जगा ही डालो सोये खुद को अब
गरजो मानों कि भूकंप हो।।
कब तक धूल-धूसरित,लाचार रहो
करो कुछ सब दंग हों।।
जब परिणाम पटल पर आये, मित्र
सुनाई बस जीत-मृदङ्ग हो।।
✍️प्रतीक प्रभाकर
Paperwiff
by pratikprabhakar
27 Oct, 2020
कल्पना के पंख
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