"टाइम देखा है आठ बजने को हैं, कहाँ थी अब तक"
नैना के घर में घुसते ही मोहन जी चिल्लाते हुए बोले।
"वो पापा आज ऑफिस में काम ज्यादा था इसलिए थोड़ी देर हो गईं" ड़रते हुए नैना बोली
"थोड़ी! पूरे दो घंटे लेट हो तुम, ऐसी नोकरी हमें नही करवाना तुमसे की रात को आठ-आठ बजे तक घर आओं। पता है न पिछले साल रमन की बेटी के साथ क्या हुआ था। आये दिन समाचारों में लड़कियों के साथ दुराचार की ख़बर सुनते हैं, ऐसा तुम्हारे साथ न हो इसलिए तुम्हें रोकते हैं हम।" मोहन जी का गुस्सा अभी भी जारी थीं।
तभी मोहन जी का आवारा बेटा बाहर से आया और उनसे पांच सौ रुपये मांगने लगा। मोहन जी ने एक बार में ही पर्स से पाँच सौ रुपये का नोट निकाल कर दे दिया। जाते-जाते मोहन यह भी कहते गया कि दोस्त की पार्टी है रात को घर आने में लेट हो जाएगा। जिसे मोहन जी ने सहज ही स्वीकृति दे दी। नैना अपने भाई को जाता हुआ देखती रहीं।
कुछ सवाल नैना को आज फिर परेशान करने लगें हैं। काश उन लड़कों के घरवालों ने उन्हें रात को बाहर जाने से रोका होता, काश उसके पिता जैसे लोग लड़कियों को जल्दी घर आने पर जोर देने के बजाय, अपने लड़को को देर रात बाहर जाने पर रोक लगाते, काश लड़कियों को मर्यादा में रहने की सीख देने वाले लोग लड़को को अच्छे संस्कारो की सीख देते तो आज उसकी बहन समान दोस्त मधु जीवित होती। काश ये दुनिया की भेदभाव वाली सोच इतनी आसानी से बदल पाती। काश.....
स्वरचित, अप्रकाशित
@बबिता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Soch hi nhi badalati....Well written
Nice write up
Thankyou so much @deepali ji @poonam ji
बहुत सच्ची अभिव्यक्ति
Please Login or Create a free account to comment.