चेहरा मैं कैसे भूल सकता हूँ।क्या खास था उसमें? वैसे उसे अगर आम आँखों से देखा जाये तो कुछ भी नहीं। छोटी-छोटी आँखें,गेंहुआ रंग, छोटा कद और भरा-पूरा शरीर।तो ये थी उसकी शारीरिक बनावट। कोई अप्सरा या हूर की परी नहीं थी वो।फिर मुझे वो कैसे याद रह गयी? मैं तो रोज एक से बढ़कर एक खूबसूरत चेहरे देखता हूँ फिर वही एक चेहरा क्यूँ? उसमें कुछ नहीं ब्लकि बहुत कुछ था जो उसे बाकियों से बिल्कुल अलग बनाता था। उसका वो मुस्कराता चेहरा,आँखों में दृढ़ विश्वास और बातों में अपनापन। वो किसी को भी अपना बना सकने के लिए काफी थीं।
उसे उसकी पहली तैनाती मिली थी नोएडा में एस डी एम जेवर के तौर पर । मैं अपनी एक महत्त्वपूर्ण बिजनेस डील के सिलसिले में उन दिनों वहाँ गया था। मेरा काम वहाँ पूरा हो चुका था और अब मेरा प्लान था नोएडा में अपनी शाम को एंजॉय करने का। इसकी पूरी तैयारी भी हो गई थी। और अब बस मुझे नियत समय पर नियत जगह पर पहुँचना था पर भला हो उस किडनैपर का! एक बदमाश ने शहर के एक जाने-माने बिजनेस मैन की बेटी का अपहरण कर लिया था इसलिए सब तरफ हड़कंप मचा था। क्या पुलिस वाले और क्या प्रशासनिक अधिकारी! सभी का बैंड-ढोल सब कुछ बज चुका था। लड़की का अपहरण हुए अट्ठारह घंटे हो चुके थे पर उसका कहीं कोई सुराग नहीं लग पाया था।अधिकारियों ने आकाश- पाताल एक कर रखा था पर नतीजा सिफर ही था।
गाड़ियों की अच्छे से चेकिंग हो रही थी। मैं इन सबसे बेख़बर नोएडा- ग्रेटर नोएडा एक्स्प्रेस वे से जेवर से नोएडा की तरफ निकल ही रहा था कि पुलिस ने चेकिंग के लिए मेरी गाड़ी रोक दी और गाड़ी की चेकिंग करने लगी। वो भी किनारे खड़े होकर ये सब बड़े ध्यान से देख रही थी। और इधर मेरी हालत खराब हो रही थी। मुझे डर था कि मैंने जो महँगी शराब गाड़ी में रखी है कहीं वो पुलिस के हाथ ना लग जाये और जिसका डर था वही हुआ! पुलिस के हाथ शराब लग चुकी थी और अब पुलिस वाले मुझसे पूछताछ कर रहे थे। उस समय मेरी उम्र यही कोई चौबीस साल थी। बेहद कम उम्र में अपने अमीर पिता का बड़ा और विस्तृत बिजनेस उनके साथ मिलके सम्भालने लगा था और उनकी इकलौती संतान तो था ही। इस लिए मुझे अपने मन का करने की पूरी आज़ादी थी । जो चाहूँ कर सकता था। उसी का ये नतीजा था और कुछ नहीं। मुझे पुलिस वालों को जवाब देते नहीं बन रहा था। पुलिस वालों को मुझपर शक होने लगा था और अब वो मुझसे कड़ाई से पूछताछ करने लगे। जब मुझे कोई रास्ता न सूझा तो मैंने अपने अमीर बाप के नाम का हवाला देने लगा। कोई और मौका होता तो शायद पुलिस वाले उनका नाम सुनकर मुझे छोड़ भी देते पर आज बात गंभीर थी। एक युवा लड़की का अपहरण हुआ था और मैं इस तरह शराब के साथ पकड़ाया था तो ज़ाहिर सी बात थी पुलिस वाले मुझे ऐसे तो जाने नहीं देते। पर जब मैंने अपने पिता का नाम लेते हुए ज़ोर दिया तो उन्होंने मुझसे मेरा मोबाइल ले लिया और मेरे पिता को फोन लगा दिया। पर मेरी खराब क़िस्मत! मेरे पिता ने जब मुझे उनकी सबसे ज़्यादा जरूरत थी मेरा फोन नहीं उठाया। मैं मन-ही-मन उन्हें कोसते हुए सोचने लगा अब क्या? तभी एक पुलिस वाले ने कहा कि वो मेरे पिता के नंबर को ट्रैक करके चेक करेंगे। अगर ये नंबर वाकई मशहूर बिजनेस मैन धनंजय राय का हुआ तो वो मुझे जाने देंगे। मुझे किनारे मेरी गाड़ी के साथ ही खड़ा करवा दिया गया और दो पुलिस वाले मेरे अगल-बगल खड़े हो गए। जिस पुलिस वाले ने ये आइडिया सुझाया था वो मेरे पिता के नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर चेक कराने लगा।
कुछ देर बाद वो सभी अधिकारियों को मेरे पास लेकर आया और बोला कि वो नंबर वाकई बिजनेस मैन धनंजय राय का ही है। हुह्! तबसे क्या मैं भजन गा रहा था। जब वो नंबर मेरे पिता का है तो उनका ही न निकलेगा! मैंने मन ही मन में सोचा। मैं ने ख्यालों कि दुनिया से बाहर निकलते हुए उस पुलिस वाले से पूछा "तो अब क्या? " उसने कहा कि "तुम जा सकते हो। " इतने में वो बोल पड़ी जो अभी तक सारे घटनाक्रम को चुप-चाप किनारे खड़े होकर ध्यान से देख रही थी "नहीं ये नियम विरुद्ध होगा। ये लड़का चाहें किसी का भी बेटा हो पर पहले इसे थाने चलना होगा। इसने इतनी सारी शराब अपनी गाड़ी में रखी है और ऐसा करने के लिये इस के पास दिल्ली एक्सरसाइज एक्ट 2009 एवं दिल्ली एक्सरसाइज रूल 2010 के अंतर्गत कोई लाइसेन्स भी नहीं है जो इसे हार्ड लीकर का सेवन करने का अधिकार दे और इसकी उम्र भी 25 साल नहीं है। " उसकी बातें सुनकर मैंने खुद से कहा गई भैंस पानी में। मेरी शाम तो बर्बाद समझो! अब मैं भी गुस्से में आ गया। मैं बोला " अभी तक तुम लोग ये पता नहीं कर पा रहे थे कि मेरे पिता कौन हैं और मैं कौन हूँ और अब ये नए नियम-कानून! हद हो गई है। " मेरी बात सुनकर वो मेरी तरफ पलटी और बोली " शायद तुमने सुना नहीं ये कानून 2009 और 2010 में ही बने थे। और वैसे भी तुम अभी बच्चे हो। जोश- जोश में अगर गलती करो तो कम- से -कम सही बात बताने पर उसे मानो भी। " और बोल कर चुप हो गई। मैं चिढ़ गया। "क्या इसने अभी-अभी मुझे बच्चा बोला! हद है मतलब! मैं तुम्हें ढंग से सबक सिखाउँगा!" मैंने मन ही मन कहा। उसने कहा कि थाने चलना पड़ेगा। तब उसी पुलिस वाले ने जिसने मुझे मेरे पिता के बारे में जानकर जाने को कहा था उसने उसे रोका और बोला कि " एक बार फिर से विचार कर लो। धनंजय राय का बेटा रोहीन राय है ये। कहीं आगे चलकर तुम्हें ही परेशानी का सामना ना करना पड़ जाये।" इस पर वो बोली "चाहें किसी का भी बेटा हो कानूनसभी के लिए एक समान है। और वैसे भी इस लड़के को मनमानी करने से पहले अपने पिता के बारे में सोचना था न। अब उनका नाम जपने से क्या फायदा !" और मुझे पुलिस की गाड़ी में बैठा कर थाने ले आयी।
जैसा कि होना था.... जैसे ही मेरे पिता को मेरे बारे में पता चला उन्होंने अपने लॉ फर्म के सबसे अच्छे वकील को मेरी ज़मानत करवाने के लिए भेजा। मेरी ज़मानत करवाने के लिए नोएडा के डी एम खुद चलकर आए। उन्होंने एस डी एम जेवर यानी कि मैथिली शुक्ला को खूब सुनाया वो भी मेरे सामने। ये सब देखकर मुझे बड़ा सुकून मिल रहा था। मेरे सामने ही वो सिर झुकाए खड़ी थी और डांट सुन रही थी। डी एम सहाब ने ये कहकर अपनी बात पूरी या कहें अपनी डांट पूरी की कि "हद में रहो अपनी। वही बेहतर होगा तुम्हारे लिए। " उनके इतना कहने पर सिर झुकाए-झुकाए ही उसने हाँ में सिर हिला दिया और फिर थाने के बाहर चली गई। ये सारा कार्यक्रम देखकर मुझे कुछ सुकून मिला और मेरा बदला पूरा हुआ। मेरे चेहरे पर एक लंबी मुस्कान आ गयी। मैं भी अब चलने के लिए उठ खड़ा हुआ तो डी एम सहाब ने अपनी नयी-नयी अधिकारी बनी एस डी एम जेवर यानी कि मैथिली शुक्ला के लिए माफ़ी भी माँगी। मुझे क्या चाहिए था भला। मेरे अहं को अब जाकर संतुष्टि मिली थी उसे डांट खाते देखकर जो उम्र में मुझसे 4 साल बड़ी थी और हर प्रकार से बहुत योग्य भी।
जब सारा कार्यक्रम खत्म हुआ और मैं थाने से बाहर निकला तो मेरे वकील ने मेरी बात मेरे पिता से करवायी। मैं फोन कान पर लगाए उनके बातों का जवाब ही दे रहा था कि मेरी नजर मुझसे करीब सौ कदम दूरी पर खड़ी एस डी एम मैथिली शुक्ला पर गई। ध्यान से देखा तो पाया कि वो किसी 14-15 साल के लड़के से हँस-हँस कर बात कर रही थी। मैं हैरान रह गया। अभी-अभी ये स्त्री अंदर इतनी भयंकर डांट खा रही थी और इसका चेहरा कितना उतरा हुआ था। और अब एक बच्चे से इतना हँस-मुस्कुरा कर बात कर रही है। अजीब है ये! अपने पिता से बात खत्म करने के बाद मैंने अपने वकील से एस डी एम मैथिली शुक्ला और उस लड़के के बारे में सब कुछ पता लगाने को बोला। न जाने क्यूँ मुझे उसके बारे में जानने की इतनी उत्सुकता हो रही थी। मैं खुद भी हैरान था अपने इस रवैये पर। पर कुछ भी कहो मैं मैथिली से पूरी तरह प्रभावित हो गया था। उसका साहस, उसकी ईमानदारी और उसका वो निडर व्यक्तित्व! मुझे उसकी तरफ ये सभी आकर्षित कर रहे थे।
दो दिन बाद मेरे वकील ने मैथिली और उस लड़के की पूरी कुंडली मेरे सामने लाकर रख दी। वो एक बेहद सामन्य परिवार से थी। पहले प्रयास में ही यू पी एस सी क्वॉलिफाइ कर आइ ए एस अधिकारी बन गई थी। हूँ! तो शायद इस बात का घमंड होगा उसे! मैंने मन ही मन सोचा। जब उस लड़के के बारे में पढ़ा तो मैं हैरान रह गया। वो एक पटाखे की फैक्ट्री में बाल मजदूर के रूप में काम करता था जिसे मैथिली ने आज़ाद करवाया और उसकी जिम्मेदारी उठा रही थी। उसके बारे में इतना सब जानकर मैं सच कहूं तो सन्न था। मैंने कभी बिजनेस के अलावा कुछ नहीं किया। दूसरों के लिए तो कुछ भी नहीं। अपनी दुनिया में लगे रहना ही मुझे आता था। अपने सुख से मतलब रखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति को आज बहुत हैरानी हो रही थी और जो सामने था उस पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। पर जो भी था सच था।
तो अब मुझे समझ में आया एक सामान्य सी स्त्री के अंदर इतना साहस, इतनी निडरता कहां से आयी.....
इसीलिए उसे मैं नहीं भूल सकता, कभी-भी नहीं भूल सकता.....फर्क़ नहीं पड़ता..... हम मिलें, ना मिलें .....
मेरी आप सभी पाठकों से विनती एवं निवेदन है कृपया अपनी अनमोल समीक्षायें मुझे आवश्य दें जिससे मुझे पता चले कि मैं कैसा लिखती हूँ और मुझे कहाँ सुधार की ज़रूरत है।
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धन्यवाद।
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