'मम्मी मुझे शादी नहीं करनी। ' 'क्यूँ नहीं करनी। कैसी ऊलजलूल बातें कर रही हो!' 'क्यूंकि मुझे कभी मेरी पसंद का लड़का नहीं मिल सकता। ' 'कैसी बात कर रही हो! इतनी बड़ी दुनिया है। इतने सारे लोग हैं। भगवान ने किसी न किसी को तो तुम्हारे लिए बनाया ही होगा। ' 'वही तो दिक्कत है! इतनी बड़ी दुनिया में उन्होंने मुझ एक-अकेली को छोड़ दिया। मेरे लिए उन्होंने किसी को नहीं बनाया। ' 'हैं! क्या कुछ भी बोले जा रही हो। कोई बहाना मत बनाओ शादी टालने का। और अगर बनाना ही है तो थोड़े बढ़िया वाले बनाओ। समझी!' 'मम्मी! सच में क्या आपको लगता है मैं जैसा जीवनसाथी ढूँढ रही हूँ वैसा कोई मुझे मिल पायेगा वो भी आज के ज़माने में!' 'ज़रूर मिलेगा। ' 'क्या सच में भगवान ने मेरे लिए ऐसे व्यक्ति को बनाया होगा? क्या जो गुण मुझे अपने जीवनसाथी में चाहिये वैसा कोई व्यक्ति होगा? सच कहूं तो मुझे नहीं लगता ऐसा कोई व्यक्ति होगा।' 'जब तक मैं तुम्हारे पापा से नहीं मिली थी तब तक मुझे भी ऐसा ही लगता था। ' 'क्या मम्मी! आप भी एकदम रोमांटिक हिन्दी फ़िल्मों की नायिका जैसे डायलॉग मार रही हैं!' 'सच में तुम मेरा विश्वास करो। और वैसे भी तुम जैसा लड़का चाह रही हो वैसा लड़का मिलना मुश्किल तो है, नामुमकिन नहीं। ' 'है न मुश्किल! मुझे लगा ही था। ऐसा करिए आप और पापा मेरे लिए जीवनसाथी चुन लीजिए। मैं उससे शादी कर लूँगी। मुझ से चुनना ना हो पाएगा। ' 'देख लो! तब तुम्हें हमारी पसंद के लड़के से शादी करनी पड़ेगी। ' 'हाँ मैं आपकी पसंद के लड़के से शादी कर लूँगी आख़िर आपके लिए भी तो पापा को नाना जी और नानी ने ही चुना था।' 'पक्का? ' 'पक्का!' 'ठीक है फिर। '
मानसी अट्ठाइस साल की हो चुकी थी और तीन भाई-बहनों में वो सबसे बड़ी थी। बेहद सुलझी और शांत। वो उन लोगों में से थी जिसे ये बहुत अच्छे से पता होता है कि उन्हें कब क्या करना है और कब क्या चाहिए। पढ़ाई-लिखाई में अच्छी थी। बात अगर रंग-रूप की करें तो सांवला रंग, 5'1 लंबाई, गोल चेहरा, सामन्य आकर की दो आंखें, सेहतमंद शरीर,एक नाक, दो कान, दो हाथ और दो पैर! कुल मिलाकर वो बेहद सामन्य थी। पर खास उसका स्वभाव था। जुझारू और जुनूनी। साथ ही साथ शांत तो थी ही। बिल्कुल डेडली काॅम्बिनेशन।
उसके स्वभाव की एक और खास बात ये थी कि वो जल्दी घुलमिल नहीं पाती थी कम बोलने के कारण, पर जो एक बार घुलमिल गई तो अपने अपनेपन और स्नेहिल स्वभाव से सबको अपना कायल बना देती। और उसे दिखावे से सख्त नफ़रत थी।
ज़िम्मेदारी भी दोनों की है, ये बात वो बखूबी समझता हो। फिर लड़का दिखने में चाहें जैसा भी हो वो उससे शादी कर लेगी। पर ये सारे गुण एक ही व्यक्ति में मिलना वाकई एक टेढ़ी खीर है और ये बात उसे अच्छे से पता थी।
इन्हीं सब से तंग आकर मानसी ने अपने लिए जीवनसाथी चुनने की ज़िम्मेदारी सौ प्रतिशत अपने माता-पिता को सौंप दिया। उसने कहा वो अपनी पसंद का लड़का चुन कर उसके लिए लायें वो शादी कर लेगी। उसे फर्क़ नहीं पड़ता लड़का गोरा होगा या काला, बस लंबाई अच्छी होनी चाहिए ताकि बच्चे भी लंबे ही हों! और उम्र बत्तीस तक हो, इससे बड़ा नहीं। अब इतनी सिम्पल पसंद ! ऐसा लड़का ढूँढ़ना उसके माता-पिता के लिए भला कौन-सी बड़ी बात थी! और उनकी बेटी के जीवनसाथी में जो अनिवार्य गुण होने चाहिए वैसे गुणों वाला लड़का तो वो आकाश-पाताल एक कर के लायें! यही तो ख़ासियत होती है माता-पिता की। और मानसी की पसंद और उसके स्वभाव से तो वो भली भाँति परिचित थे।
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साल भर बाद
मानसी आज अपने माता-पिता द्वारा पसंद किए हुए लड़के से मिलने वाली थी। उसके लिए ये मुलाक़ात कहीं असहज करनी वाली ना हो इस लिए उसके पापा ने लड़के को घर पर ही बुला लिया था। आज रविवार का दिन था तो मानसी की छुट्टी तो पहले से थी। लड़का आ ई पी एस अधिकारी है, और इसी शहर के एस पी क्राइम के तौर पर तैनाती थी। मानसी को लड़के से मिलना था और बस हाँ कर देना था। ऐसा इसलिए क्योंकि मानसी प्रतिष्ठित सरकारी मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर थी तो उसके लिए तो रिश्तों की मानो बाढ़-सी आ गई थी, लेकिन इन रिश्तों के समुद्र से उसके लिए योग्य जीवनसाथी रूपी मोती चुनने के लिए उसके माता-पिता को बहुत मेहनत करनी पड़ी। इसीलिए उन्हें साल भर लग गए। लड़के के माता-पिता से मिलकर सब बात पहले ही हो चुकी थी। उनकी भी पूरी सहमति थी, ब्लकि वो बहुत खुश थे कि उन्हें मानसी जैसी योग्य बहु मिलने वाली थी। उनका परिवार संपन्न था। लड़के के पिता प्रतिष्ठित सरकारी डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल थे और माँ गृहणी। परिवार में लड़के की दादी थीं, उसके माता-पिता थे, लड़का एक भाई, एक बहन थे, जिसमें वो बड़ा था और बहन छोटी जो की एक इंजीनियर थी। लड़के ने भी बी टेक किया था। दोनों भाई-बहनों ने आई आई टी से बी टेक किया था। पूरा परिवार साथ रहता था। मानसी के माता-पिता को पूरा परिवार बहुत अच्छा लगा। परिवार में सहज रूप से एक-दूसरे के लिए प्रेम और सम्मान था। सब पढ़े-लिखे थे। मानसी के माता-पिता को ये परिवार बिल्कुल अपने परिवार जैसा लगा। यहां जाकर मानसी बहुत अच्छे से घुल-मिल जाती और उसे किसी प्रकार की दिक्कत भी नहीं होती। यही सब सोच कर उन्होंने इस घर में उसका रिश्ता पक्का कर दिया।
तो आख़िरकार उन्होंने मानसी के लिए मोती चुन ही लिया था।
दरअसल ऐसा ही होता है जब आपका बेटा या बेटी योग्य होते हैं तो उनके लिए रिश्तों के ढेर लग जाते हैं। आत्मनिर्भर होने का और सफल होने का सबसे अधिक फायदा इस मामले में लड़की का होता है। उसे मनपसंद जीवनसाथी भी मिलता है, और शादी बिना दान-दहेज के संपन्न होती है क्यूंकि दान-दहेज से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण योग्य पढ़ी-लिखी और योग्य लड़की है जो अपने साथ सुख-समृद्धि, संस्कार और योग्यता का खज़ाना ले कर आती है और पूरे परिवार का और यहां तक की आने वाली पीढ़ियों का भी सकारात्मक रूप से कायाकल्प कर देती है।
घर में बहुत चहल-पहल थी। माँ खाने-पीने की तैयारियों का जायजा ले रही थीं। वहीँ मानसी को उसकी छोटी बहन श्री तैयार कर रही थी। पापा पूरे घर की व्यवस्था देख रहे थे। देखते-घूमते जब वो मानसी के कमरे के बाहर आए तो देखा वो शीशे के सामने बैठी थी और श्री उसे तैयार कर रही है। वो वहीँ रुक कर उसे बड़े ध्यान से तैयार होते देखने लगे। देखते-देखते उनकी आँखों में कब आंसू आ गए उन्हें भी पता नहीं चला। पीछे से जब श्रीमती जी की आवाज आयी तो धीरे से आंखों को पोंछ कर वो उधर चले गए जहाँ श्रीमती जी बुला रही थीं।
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चार घंटे बाद:
मानसी लड़के से मिल चुकी थी और उसने अपनी सहमति भी दे दी शादी के लिए। लड़का उसे अच्छा लगा। उसका नाम तेजस्विन था। शांत स्वभाव और सुलझा व्यक्तित्व। वो उसे बिल्कुल अपने जैसा ही लगा। बिल्कुल क्रिस्टल क्लिअर। कम बोलता पर एक दम पते की बात करता। हँसमुख चेहरा। वो जब मुस्कराता तो उसके दोनों गालों पर गड्ढे पड़ जाते जिससे वो और आकर्षक दिखता था। बात अगर रंग-रूप की करें तो लंबा कद, 6'0 , गोरा रंग, बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त और गठीला शरीर।उसे देख कर साफ़ पता चलता था कि वो काफी एथलेटिक था। उम्र इकत्तीस साल थी उसकी, मानसी से दो साल बड़ा।
घर में एकदम उत्सव का माहौल था। सब बहुत खुश थे। अब दोनों की मंगनी करानी थी, फिर बरीक्षा, फिर तिलक और फिर शादी। दोनों का कुंडली मिलान पहले ही हो चुका था। और दोनों की कुंडली बहुत सुन्दर तरीके से बैठी थी। बिल्कुल परफेक्ट। दोनों के अट्ठाइस गुण मिले थे। तो शादी पक्की हो गई।
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कुछ दिनों बाद:
'मम्मी आपको पापा से कब प्यार हुआ। ' 'सम्मान तो मैं उनका जब हम पहली बार मिले तभी से करती हूँ पर अगर प्यार की बात करें , तो मुझे उनसे सच्चे अर्थों में तब प्यार हुआ जब तुम तीन महीने की मेरे पेट में थी और मेरी बी ए की दूसरे साल की परीक्षा चल रही थी। मजबूरी में मुझे रात भर जागना पड़ रहा था और तुम्हारे पापा भी मेरे साथ रात-रात भर जागते थे मेरा ध्यान रखने के लिए। और अगले दिन कोर्ट में जाकर बहस भी करते थे। हालांकि ऐसा करने लिए मैंने कभी उनसे नहीं कहा पर वो कभी उस बीच सोए नहीं भले दिन में चाहें उनकी कितनी भी हालत ख़राब हो जाये। नींद पूरी ना हो तो वो बहुत परेशान हो जाते हैं फिर भी वो मेरे और तुम्हारे लिए जागते थे। इस मामले में तुम बिल्कुल उन पर गई हो। ये दरअसल बहुत बड़ी बात थी साल 1993 में। अगर कोई पति अपनी गर्भवती पत्नी का ऐसे ध्यान आज रखे तो ये सामान्य बात होती है। अब परिवार भी छोटे ही होते हैं और लोगों की सोच भी बदल गई है। पर तब ऐसा नहीं था। तब परिवार में तुम्हारे बाबाजी थे, बड़े, मझले और छोटे ताऊजी और उनका परिवार भी था। और घर का माहौल कुछ ऐसा था कि अगर पत्नी सुनिए जी कहती और जवाब में पति हाँ बोल दे तो उसे तुरंत जोरु का गुलाम की संज्ञा दे दी जाती। पर तुम्हारे पापा इन सबसे अलग मेरा बहुत ध्यान रखते थे। जब तुम हुई तो सब दुखी हो गए पर तुम्हारे पापा बहुत खुश थे। उन्होंने बड़े प्यार से तुम्हारा नाम मानसी रखा। तब मेरे मन में उनके लिए जो सम्मान था वो हज़ार गुना बढ़ गया। ' 'शादी के इतने समय बाद!' 'ये दिल की बात होती है। दिल ही जाने। पता नहीं चलता कि जीवनसाथी की कब कौन सी बात इसे भा जाए और प्यार हो जाये। इसमें समय की कोई सीमा नहीं। प्यार की सबसे प्यारी बात ये है कि जब-जब तुम कुछ नया, कुछ अच्छा अपने जीवनसाथी में देखोगी, तब-तब तुम उनके प्यार में और गहराई से डूबती जाओगी।'।' 'तो मतलब अपने पतिदेव से प्यार मुझे तब होगा जब मैं पहली बार माँ बनने वाली होऊँगी।' 'धत पागल! तुम्हें लाज नहीं लगती। ' 'अरे मम्मी इसमें लाज की क्या बात । दीदी आख़िर अपने और जीजाजी की ही तो बात कर रही है। ' 'तुम दोनों बहने बिल्कुल एक जैसी हो। बेशरम!' घर में चारों तरफ खिलखिलाहट गूँज गई।
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तीन साल बाद
मानसी की शादी को तीन साल हो ने को थे। जल्द ही वो माँ बनने वाली थी। ऐसे समय में जब आमतौर पर होने वाली माँ इस बात को लेकर चिंतित होती हैं कि बच्चे का वो कैसे ध्यान रखेंगी तब मानसी बेफिक्र होकर जो काम वो घर से कर सकती थी, कर रही थी। उसके हिस्से की चिंता उसकी सास कर रहीं थीं। वो उसके चेहरे पर ज़रा सी शिकन आ जाने पर ठीक वैसे ही परेशान हो जाती हैं जैसे उसकी माँ होती हैं। वास्तव में शादी के बाद जब मानसी इस घर में आयी तो उसे ज़रा भी नहीं लगा कि उसका घर, उसका परिवार पीछे छूट गया। बल्कि उसे ऐसा लगा मानो उसका परिवार और बड़ा हो गया है। उसे सबसे भरपूर प्यार और अपनापन मिला। चाहें वो सासू माँ, ईया सास हों, ससुर जी हों या ननद। सब बहुत प्यारे थे।
तेजस्विन और उसका रिश्ता तो बहुत अनोखा था। वो बहुत कम बोलता था। पर क्या ग़ज़ब खूबसूरत उसकी आँखें थीं। किसी की भी साँसें अटक जायें उसकी खूबसूरत आँखों को देखकर। बिना कुछ कहे ही वो सब कुछ अपनी आँखों कह देता था, अपना प्यार जता देता। जितनी बार वो हल्का सा मुस्कराता, उतनी बार मानसी उसकी मुस्कराहट में नए सिरे से खो जाती थी। वो इतना आकर्षक था कि हर बार मानसी उसके आकर्षण में खुद को भूल जाती थी। और तब उसे अपनी माँ की कही बात याद आती थी 'प्यार दिल की बात है। दिल ही जाने।' 'जब-जब तुम कुछ नया, कुछ अच्छा अपने जीवनसाथी में देखोगी, तब-तब तुम उनके प्यार में और गहराई से डूबती जाओगी।' सही ही तो कहा था उन्होंने। उसके साथ बिल्कुल ऐसा ही तो हो रहा था। अब जब वो गुज़रे समय को पलटकर देखती है तो उसे समझ आता है शादी को लेकर उसकी घबराहट बेकार ही थी। शादी का रिश्ता हो या दोस्ती का, रिश्ता तभी सम्पूर्णता प्राप्त करता है जब उस रिश्ते में जो लोग होते हैं वो उस रिश्ते को पूरे दिल से और निष्ठा से निभाते हैं। रिश्ते में जब एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान होता है तो प्रेम का अंकुर फूट ही जाता है और धैर्य उस रिश्ते को सींचने का काम करता। उन दोनों के रिश्ते में भी यही बात थी। दोनों पहले एक-दूसरे के दोस्त बने फिर प्रेमी। कहते हैं जो जोड़े पहले दोस्त होते हैं, फिर प्रेमी बनते हैं, उनका रिश्ता बहुत ख़ूबसूरत होता है, बहुत ख़ास होता है।
तेजस्विन उसका बहुत ख्याल रखता था। सिर्फ उसका ही नहीं घर के हर सदस्य का वो बहुत ख़्याल रखता था।यही बात तो उसकी मानसी को और अच्छी लगती थी। और फ़िलहाल गर्भावस्था के कारण सब उसका विशेष ध्यान रखते थे।
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एक माह बाद:
मानसी ने एक प्यारे-से बेटे को जन्म दिया। सब बहुत खुश थे। माँ और बच्चे दोनों ही स्वस्थ थे। हालांकि उसकी सास थोड़ी निराश थीं। बाकी सास लोगों के विपरीत वो आशा कर रहीं थीं कि बेटी होगी, उन्होंने एक प्यारी पोती के साथ सुन्दर भविष्य की कल्पना भी कर डाली थी। उन्हें बेटी होने की पूरी आशा थी इसीलिए वो एक बार भावुक होकर कहने लगीं ' बेटी होती तो मैं उसे रंग-बिरंगी फ्राक पहनाती, उसके बाल संवारती।' तब ससुर जी ने समझाया कि 'बेटा-बेटी किसी के हाथ में थोड़े ही होते हैं और रही बात रंग-बिरंगी फ्राक की और बाल संवारने की तो जब तक नन्हें बल-गोपाल इतने बड़े नहीं हो जाते की उन्हें लड़के और लड़की की पोशाक में भिन्नता समझ में नहीं आती तब तक आप उन्हें वैसे ही तैयार कर सकतीं हैं। ' इसपर उन्होंने तुनकते हुए कहा 'हाँ वैसे ही जैसे आपके बाल-गोपाल तेजस्विन को एक बार मैं ने तैयार किया जब वो साल भर के थे, तब उन्होंने हमारी मेहनत से बनाई ड्रेस को नोच-नोच के ख़राब कर दिया।' उनकी बात सुन सब हंसने लगे थे।
मानसी के प्रति सबके प्यार और परवाह को देखकर मानसी की माँ को बहुत तसल्ली हो रही थी।
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पाँच साल बाद
'आयु बेटा स्कूल के लिए देर हो रही है। उठ जाओ साढ़े छह बज रहे हैं, सात...... कहाँ गया? आयु! आयु!' 'हैप्पी बर्थडे टू यू ! हैप्पी बर्थडे टू यू! हैप्पी बर्थडे टू यू डियर मानसी! हैप्पी बर्थडे टू यू!' मानसी ने पलटकर देखा तो पाया सब ने मिलकर उसे सुबह-सुबह चौंका दिया। आज उसका जन्मदिन था सो सबने मिलकर उसे उपहार दे दिया इतना सुंदर। 'तभी मैं सोचूँ! इतनी सुबह-सुबह ना तो माँ दिख रहीं हैं ना पापा। और आयु नहीं दिखाई दिया तो मुझे अंदाज़ा लग गया आप लोग क्या करने वाले हैं।' 'मम्मी! कभी तो सरप्राइज़ड होने की ऐक्टिंग कर लिया करो।' 'अरे मेरे लाल! हुई ना मैं सरप्राइज़ड, बहुत सरप्राइज़ड हो गई।' आगे बढ़कर उसने अपनी सासू माँ और ससुर जी के आशीर्वाद लिए। फिर ईया सास के आशीर्वाद लिए। सबने उसे सुखी और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद दिया। इतने में ननद साहिबा का फोन आ गया। उन्होंने भी अपनी प्यारी भाभी को जन्मदिन की दिल खोलकर बधाइयाँ दीं। आयु को जब मानसी ने स्कूल भेज दिया तब कहीं जा कर चैन मिला। आज उसने कॉलेज से छुट्टी ले रखी थी क्योंकि उसे पता था आज उसके जन्मदिन के मौके पर सब उसके साथ समय बिताना चाहते थे। वो कमरे में आकर बिखरे कमरे को जल्दी-जल्दी समेटने लगी। तभी उसे महसूस हुआ किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया है। पलटकर देखा तो तेजस्विन उसे बड़े प्यार से देख रहा था। गई! गई! मानसी गई! अरे मानसी तेजस्विन की आँखों में खो गई। 'तुम्हारी तैयारी बहुत अच्छी थी मुझे चौकाने की। पर.....' 'पर तुम्हें पहले से ही सब पता रहता है, यही ना। जो मैं अब करने वाला हूँ तुम्हें उसका ज़रा भी अंदाज़ा नहीं।' इतना कहकर तेजस्विन ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और धीरे-धीरे उसके करीब आने लगा। और धीरे से अपने होंठ उसके होठों पर रख दिया। मानसी और तेजस्विन एक दूसरे में पूरी तरह खो चुके थे। किसीने सही ही कहा है दिल की बातें दिल ही जाने।
स्वरचित एवं मौलिक
अदिति मिश्रा 'वर्तिका'
8/7/2022
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
कैसी लगी आपको ये कहानी? कृपया ज़रूर बताएँ.
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