वो सफलता के शिखर पर था। जाना-माना और पहचाना चेहरा था। किसी परिचय का मोहताज नहीं था।
वो सामान्य-सी, एक आम लड़की थी जो गुमनाम थी। अपने मुकाम की तलाश में बस अभी-अभी लगी थी।
वो अपने काम में माहिर था। उसके लिए तो सर्वश्रेष्ठ शब्द भी छोटा था। उसे इस शब्द की तो ज़रूरत ही नहीं थी, बल्कि इस शब्द के लिए वो ज़रूरी था। उसकी शख्सियत ही ऐसी थी कि ये भी कह सकते हैं कि अगर वो ना होता तो शायद कोई सर्वश्रेष्ठ शब्द ही इस्तमाल नहीं करता। तो ऐसे व्यक्तित्व का मालिक है हमारी कहानी का नायक, श्रेष्ठ (अर्थात् भगवान विष्णु का एक दूसरा नाम)।
बिल्कुल जैसा नाम वैसा काम! तीस साल की उम्र में दुनिया की टॉप टेक कंपनी का मालिक। कहने को तो इंजीनियर है पर कोई काम इसने छोड़ा नहीं है। कानून का भी बहुत अच्छा ज्ञान है इनके पास, इतना की अच्छे से अच्छे वकील भी इनके सामने पानी भरते हैं। टॉप इंजीनियर तो ये हैं ही, साथ ही साथ एथिकल हैकर भी हैं, कोई ऐसा कोड नहीं जिसे ये क्रैक ना कर सकें, और कोई भी मशीन ऐसी नहीं जिसे इन्होंने तोड़ के ना जोड़ी हो। इंसानों को भी तोड़ना अच्छे से जानते हैं, चाहें शरीर से या दिमाग से। मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स का गहरा ज्ञान रखते हैं और कूटनीति का भी। बिजनेस तो इनका पेशा ही है। भला उसमें कौन इनको पछाड़ पाया है! इनके बारे में एक और कमाल की बात ये है कि इन्हें बहुत सारे शौक भी हैं। और उससे भी कमाल की बात ये है कि ये उन सब में भी बिल्कुल परफेक्ट हैं। ऐसे ही इनका एक शौक है मॉडलिंग। ये उसमें भी नंबर एक हैं। अब बात ये है न की कृष्ण जी इन पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हैं। दिमाग तो सुपर कंप्युटर है ही, चेहरा भी बिल्कुल अपने जैसा दे दिया है। बस जो देखे देखता ही रह जाये! तो ये कहाँ उस चेहरे को भुनाने से पीछे रहने वाले थे! जैसे ये वैसी ही इनकी टीम! एकदम वर्ल्ड क्लास! अब आप को क्या लगता है? ये सुपर मैन थोड़े ही हैं! इनकी एक बहुत क़ाबिल टीम है जो इनको और इनके काम को मैनेज करती है। ख़ुद सब कुछ ये अकेले थोड़े ही कर सकते हैं भला!
अब आते हैं हमारी कहानी की नायिका पर। इनका नाम है धरा। धरा मतलब धरती, वो धरती जो माँ है, जिसने सबको अपनी गोद में शरण दिया है। जिसके पास अथाह प्रेम एवं धैर्य है। जो सुख-दुख से परे मात्र अपने संतानो का पालन-पोषण करना जानती है ।बिल्कुल शांत,पर असाधारण और एकाग्रचित्त ! एक सामान्य लड़की हैं, जिन्होंने दिन-रात एक करके यू पी एस सी का एग्जाम क्वालीफाई किया और आई ए एस अधिकारी बन पायी हैं। ये भी तीस साल की हैं। फ़िलहाल जनसेवा से इन्हें फुर्सत नहीं। इनके मुताबिक एक बार जो आई ए एस बन गया, फिर उसका कोई अपना जीवन नहीं, जो कुछ होता है बस देश होता है और देश का होता है। और इनका दृढ़ निश्चय! उससे तो एक बार को भगवान भी डर जायें। जो ठान लिया उसे तो ये करके ही रहती हैं और जो काम इनकी नजरों पर चढ़ जाता है वो कब पूरा हो जाता है, ये तो किसी को पता भी नहीं चलता। इनके लिए ये पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है 'हम जो कहते हैं वो करके रहते हैं, और जो नहीं कहते वो तो बिल्कुल ही करते हैं। '
इनकी मिसालें इनका पूरा कैडर देता है। सब इनका बहुत सम्मान करते हैं, फिर चाहें वो जूनियर हों या सीनियर।
इनके जीवन के बस तीन मक़सद हैं, देशसेवा, माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी बनना और अपने भाई-बहन को जीवन में उन्नति करते देखना।
श्रेष्ठ और धरा की दुनिया बिल्कुल अलग है। विचार, स्वभाव और संस्कार बिल्कुल अलग हैं । दोनों की जिम्मेदारियाँ और प्राथमिकताएँ एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं।
...तो दो विपरीत धाराओं का मिलन कितना अनोखा और जबरदस्त होगा ये कोई कहने की बात थोड़े ही है!
... दोनों एक-दूसरे के प्यार में कुछ यों पड़ेंगे कि दोनों एक-दूसरे से सिर्फ़ यही कहेंगे...होना है तुम्हें मेरा।
पर कैसे?
ये देखना दिलचस्प होगा।
एक झलक:
'आपने जो कुछ भी मेरे बारे में श्वेता से कहा मैंने वो सब सुन लिया। आपने मुझे राक्षस कहा!' श्रेष्ठ तमतमाता हुआ धरा से बोला।
इधर धरा की तो सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई ये सुनते ही। पर फिर भी उसने अपने अंदर का सारा साहस जुटाते हुए श्रेष्ठ से पूछा 'कैसे आपको पता? '
उसने जवाब दिया 'जब आप मेरे बारे में उल्टा-सीधा बोल रहीं थीं तब मेरी सेक्रेटरी आपके पास खड़े होकर मुझसे ही बात कर रही थी फोन पर तो ऐसे सुना मैंने!'
'झूठ! तुम्हारी सेक्रेटरी और मेरी दोस्त श्वेता ने अपनी दोस्त के साथ गद्दारी की है। उसने जानबूझकर जब मैं तुम्हारे बारे में उल्टा-सीधा बोल रही थी तो तब ही तुम्हें फोन मिलाया ताकि मेरी सारी बातें तुम्हें सुना सके', उसने मन ही मन सोचा। तभी श्रेष्ठ एक छोटे बिल्लू की तरह गुर्राते हुए बोला 'और क्या बोल रहीं थीं आप! हाँ! कि जब मैं मुस्कुराता हूँ तो आफ़त आती है ', ये सब बोलते हुए श्रेष्ठ अपने हाथ खूब चमका रहा था और साथ ही साथ आँखें भी मटका रहा था। और ऐसा करते हुए वो धरा को बहुत प्यारा लग रहा था। जाने क्यूँ!
एक मिनट ये शैतान का परदादा कब से तुझे प्यारा लगने लगा धरा! तुझे कुछ तो हो गया है। बाहर निकल वहां से। अभी! देख तो कैसे चढ़-चढ़कर तुझे डांट रहा है। 'एक मिनट! मैं आपके बारे में या किसी और के बारे में अपने पर्सनल स्पेस में क्या बोलती हूँ उससे आपको क्या? और वो सब आपके बारे में ही बोला ये आपको कैसे पता?'धरा वाकयुद्ध में वापसी करती हुई बोली।
'पर्सनल स्पेस का मतलब ये थोड़े है आप दूसरों को राक्षस बोलेंगी। और वो सब आपने मुझे ही बोला। आपने मेरा नाम भी दो बार उस दौरान लिया ' श्रेष्ठ उसी अंदाज़ में बोला। 'अब राक्षस को राक्षस ना बोलें तो क्या देवता बोलें!' धरा धीरे से बोली पर बात श्रेष्ठ के कानों तक पहुंच गई। 'क्या कहा आपने अभी-अभी? ' वो भौंहे चढ़ाते हुए और अपनी शर्ट को ऊपर करके हाथ बाँधते हुए बोला। 'कुछ नहीं। पर आप चाहते क्या हैं?' धरा ने बात बदलते हुए कहा। 'अभी के अभी मुझसे बिना शर्त माफ़ी मांगिये।'श्रेष्ठ बोला। 'और वो क्यूँ? 'धरा ने भी गुस्से वाले अंदाज़ में कहा। 'मेरे बारे में उल्टा-सीधा बोलने के लिए और मेरी छवि धूमिल करने के प्रयास करने के लिए।'श्रेष्ठ बोला। 'देखिए! मैंने आपके बारे में या किसी और के बारे में अपने पर्सनल स्पेस में क्या कहा उसको लेकर मैं ना तो आपके प्रति ना किसी और के प्रति मेरी कोई जवाबदेही रखती हूँ। और आपने मेरी बातें क्यूँ सुनीं? मैंने तो आपको नहीं कहा की मेरी बातें फोन पर चुपके-चुपके सुनिए। ये आपकी प्रॉब्लम है मेरी नहीं।' धरा बोली। 'देखिए मिस धरा! आप मुझसे बिना शर्त माफ़ी मांगिये वर्ना...वर्ना मैं आपके ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा ठोकूँगा।' श्रेष्ठ कुछ सोचते हुए बोला। 'अजीब आदमी हैं आप। इतनी सी बात के लिए मानहानि का केस!' धरा झल्लाहट में बोली। 'हाँ तो फ़िर माफ़ी मांग लीजिए मुझसे। मैं माफ़ कर दूँगा।' इसपर श्रेष्ठ तपाक से बोला। 'देखिए! मैं माफ़ी तो...तो नहीं मांगूंगी। जो जी में आए करो। ' धरा ने भी निश्चय पूर्वक कहा। 'तो फिर ठीक है मिलते हैं कोर्ट में ', बोलकर श्रेष्ठ चला गया। 'तू तो गई धरा! ये सनकी तेरा जीना हराम कर के ही मानेगा।'धरा खुद से ही बुदबुदायी।
तो ये थी एक छोटी-सी झलक इनके खट्टे-मीठे नोंक-झोंक भरे रिश्ते की।
कहानी विभिन्न भागों में आएगी और सामान्य रूप से आगे बढ़ेगी।ये एक विशुद्ध प्रेम कहानी होगी जिसमें हल्की-फुल्की कॉमेडी, हल्का-फुल्का सस्पेंस, हल्का-फुल्का थ्रिल और ढ़ेर सारी मस्ती,प्यार, अपनापन, लगाव-जुड़ाव होगा, मीठे पल होंगे, प्यार के पल होंगे। रोमांस होगा, रूठना-मनाना होगा। किरदार अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ेंगे और उनका विकास होगा, ना कुछ तेज़ होगा, ना जल्दी। कुछ भी न ज़्यादा होगा, न कम।
ये कहानी पूर्णतः मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित है। किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों, किसी नाम, किसी स्थान या किसी घटना या घटनाक्रम से समानता मात्र एक संयोग है।
और एक विनम्र निवेदन है कृपया किसी भी प्रकार का छेड़-छाड़ या कॉपी-पेस्ट मेरी कहानी से मत करियेगा।
और एक और विनम्र निवेदन है, अपने पाठकों से, की ये कहानी जब भी आए कृपया दिल खोलकर अपना प्यार लुटायियेगा।
मैं सदैव आपकी आभारी रहूँगी। 🙏🙏
पर उससे पहले मुझे आप पाठकों को एक विशेष सूचना देनी थी। मैं एक स्टूडेंट हूँ और कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही हूँ। लिखना मेरा शौक है, पर जुनून और जिम्मेदारियाँ अलग हैं। और इस समय अपना भविष्य बनाने का समय है तो फिलहाल मैं सालभर का ब्रेक ले रही हूँ लिखने से ताकि अपना पूरा ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगा सकूँ। आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की मुझे बहुत आवश्यकता है। कृपया अपना प्यार मुझे दें।
आज ही पेपरविफ्फ पर मैंने अपना एक महीना पूरा किया और आज ही ब्रेक की घोषणा कर रही हूँ। जानती हूँ पर क्या करूँ भविष्य की बात है जिसके लिए आज तक बहुत मेहनत की है तो अब हंड्रेड पर्सेन्ट तो देना ही होगा। उससे कम क्या?
पर मैं आप सभी से जो मेरी रचनाएँ पसंद करते हैं और मुझे फॉलो करते हैं उन्हें मैं आश्वस्त करती हूँ कि साल भर बाद मैं जरूर आऊंगी और अपनी सभी कहानियाँ लिखूँगी और पूरी करूँगी चाहें वो 'मैं ज़मीं, तू मेरा आसमां' हो, 'जागरण' हो, 'This is it' हो या फिर मेरी ये रचना 'होना है तुम्हें मेरा' हो । सभी रचनाओं को ना सिर्फ पूरा करूँगी बल्कि पूरे दिल से पूरा करूँगी। मेरा वादा है आपसे कि इन कहानियों को मैं कुछ ऐसे गढूँगी की इनका एक-एक प्रसंग, इनके एक-एक किरदार सीधे आपके दिल में उतरेंगे और वहीं अपना घर बना लेंगे।
दरअसल ईमानदारी से कहूं तो मैं अपने लिए लिखती हूँ। जब अपनी कहानियां मैं लिखती हूँ तो मैं उनमें डूब जाती हूँ । ये मेरे लिए सिर्फ मेरी कहानियाँ नहीं हैं, ये तो मेरे बच्चे हैं जिन्हें मैं बहुत सम्भाल कर यहां उतारती हूँ इस विश्वास से की आप भी इन्हें उतना ही प्यार देंगे जितना मैं करती हूँ।
मेरी एक कमी और है। जब कोई कहानी मेरे दिमाग में आती है तो मैं इतनी उत्साहित हो जाती हूँ कि मैं उसे जल्दी से जल्दी लिख लेना चाहती हूँ और बस इसी चक्कर में उस कहानी की मूल आत्मा कहीं खो जाती है। और अपने इन बच्चों के साथ मैं ऐसा नहीं करना चाहती। इसीलिए एक साल का ब्रेक ले रही हूँ ताकि मन लगाकर पढ़ाई करूँ और जो चाहती हूँ वो कर लूँ। अपने व्यक्तित्व विकास पर भी काम करना है। आत्मा और मन लंबे समय से पीड़ा में हैं किसी न किसी कारण से। व्यथित मन का भी इलाज करना है और अनुशासन भी सीखना है। बहुत सारे काम करने हैं इस एक साल में।
और फिर जब मैं लौट के आऊंगी तो एक बेहतर इंसान और लेखिका बन के आऊंगी। पढ़ाई और लेखन को साथ लेकर चलना सीख के आऊंगी। और मैं आपसे वादा करती हूँ एक से एक रचनाओं को रचकर फिर से आप सब का दिल जीत लूँगी। बस एक वादा करिए। मुझे भूलिएगा मत। अपनी दुआओं में याद रखियेगा और जब मैं वापसी करूँ तो मुझे पहचान लीजियेगा।
...और फिर मुझे अपना ढ़ेर सारा प्यार दीजियेगा।
आपकी अपनी प्यारी लेखिका,
अदिति मिश्रा वर्तिका 💖💖❤❤💫💫💥💥🙂🙂
13/7/2022
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
All the best 👍
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