अनंत जब दिल्ली छोड़ के चला जाता है तब सम्पदा को अपनी गलती का एहसास होता है। उसे एक-एक करके उसके साथ बिताए एक-एक पल याद आते हैं। उसे याद आता है कि कैसे वो और अनंत आज से बारह साल पहले पहली बार मिले थे।
बारह साल पहले......
लड़की ने अपना नाम सम्पदा बताया और सीधे खड़े होने का प्रयास करने लगी। लड़के ने भी उसका हाथ छोड़ दिया और अपना सुर पूरी तरह बदलते हुए लगभग उसे डाँटकर बोला" ऐसी क्या बात हो गई जो जान देने चली हो? "सम्पदा ने निराश होते हुए कहा "अगर किसी लायक ना बन पाऊँ तो इस जंजाल बने जान का क्या ही करुँगी!"
अनंत को सम्पदा के जवाब में झांकती उसकी चिंताएं, उसका दुख, उसकी परेशानी सब एक-ही पल में दिखाई दे गईं। वो भी तो हर रोज़ ऐसी भावनाओं से दो-चार होता था। इस में ना तो उसकी गलती थी ना किसी और की। ये उम्र जीवन का वो पड़ाव है जब एक युवा अपने भविष्य को लेकर सबसे ज़्यादा दबाव में होता है और अपने जीवन के विषय में अनिश्चित। उसने सम्पदा को पानी पिलाया और एक शांत-एकांत बेंच पर बैठा कर उसके बगल में बैठ गया और उससे कहने लगा "मेरे पापा बहुत पढ़े- लिखे नहीं हैं और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते हैं जिसका कोई भरोसा नहीं है, मेरी माँ घर सम्भालने के अलावा सिलाई-कढ़ाई का काम करके घर का खर्चा निकालती हैं। अपनी पढ़ाई के ख़र्चे के लिए मुझे भी जुगाड़ भिड़ाने पड़ते हैं, कभी यहाँ कोई काम करके चार पैसा कमाया, तो कभी वहाँ। सच कहूं तो मुझे भी अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंता और घबराहट होती है पर पता है वो क्या है जिसके कारण मैं रोज़ सुबह उठता हूँ और फिर डट कर खड़ा हो जाता हूँ हर दिन? क्यूंकि मुझे उम्मीद है कि वो दिन मेरी जिंदगी में जरूर आएगा जब मैं भी कुछ करूंगा, कुछ बनूँगा, कुछ हासिल करूंगा और मैं भी खुश होऊँगा। अपने माता-पिता का, अपने भाई-बहन का ख्याल रखूँगा, उन्हें खुश रखूँगा। और बस जैसे ही ये ख्याल मेरे मन में आते हैं मैं लग जाता हूँ पूरे ज़ोर-शोर से अपने लक्ष्य को पाने के लिए। " और इतना कहकर वो चुप हो गया और सम्पदा की तरफ देखने लगा। सम्पदा उसे बड़े ध्यान से देख रही थी और उसकी एक-एक बात सुन रही थी। फिर वो सम्पदा की आँखों में देखते हुए बोला " जिंदगी बहुत बड़ी है और लड़ाई बहुत लंबी। ये ना तो एक दिन में लड़ी जा सकती है, ना ही जीती जा सकती है। हर दिन यहां कुछ नयी, पहले से बड़ी चुनौतियाँ सामने आ जाती हैं..... ठीक तभी जब हम अपनी नयी-नयी मिली जीत का जश्न मना रहे होते हैं। इसलिए पूरी हिम्मत, पूरे धैर्य, आत्मविश्वास और पूरी ईमानदारी के साथ अपना युद्ध लड़ना । और अपने लक्ष्य को अपनी और अपनों की खुशियों से जोड़कर रखोगी तो उसे पाने में मदद मिलेगी। मैं तुम्हारी भावी जीत के लिए अभी से तुम्हें अपनी शुभकामनाएं और बधाई देता हूँ। " उसने इतना कहा और फिर उसकी तरफ देखने लगा। सम्पदा अभी-भी निःशब्द-सी उसे देख रही थी।
.....वो चला गया और सम्पदा आवक्-सी उसे जाते देखती रही। वो उसे रोक भी न पायी....पर ज़िंदगी के अनमोल सबक उसे दे गया वो, बिना मांगे, बिना एहसान जताए, बिना शिकायत किए.....उसकी बातों में कितनी सच्चाई थी! कितना आत्मविश्वास था ! कितना अपनापन था! आज तक किसी ने भी उससे ऐसे बात नहीं की। कभी उसे समझाया नहीं ,कभी उसे समझा नहीं । अंतर्मुखी स्वभाव का होने के कारण वो जल्दी अपनी परेशानियां कह नहीं पाती नतीजतन उसके माता-पिता भी उसकी परेशानियों को समझ नहीं पाते, हल करना तो दूर! उनकी भी गलती कहाँ थी। सम्पदा को अपनी बात रखना ही नहीं आता था। पर ये अनजान लड़का कैसे बिना कुछ कहे ही कितना कुछ समझ गया, कितना कुछ समझा भी गया!
सम्पदा को आज एक अलग ही ऊर्जा की अनुभूति हो रही थी मानो आज अपने ही बिछड़े हिस्से से मिली हो। अनंत तो चला गया बिना अपना पता-ठिकाना बताये सिर्फ नाम बताकर पर उसका नाम सम्पदा के दिल में बस गया साथ-ही-साथ उसकी कही बातें भी...उसकी बातों का ये असर हुआ कि अब वो दिन-रात लगकर मेहनत करने लगी, बिना थके, बिना हारे। समय बीतता गया और सम्पदा अपने जीवन में सफलता और उन्नति की सीढ़ियां चढ़ती चली गई । और बीतते हर एक पल के साथ अनंत की बातें, उसका चेहरा और उसकी दिखाई राह उसके दिल में गहरी बैठती चली गईं।
सात साल बीत गए थे अनंत वाली घटना को घटे। सम्पदा ने यू पी एस सी एग्ज़ाम क्वॉलिफाइ कर लिया था और उसका सेलेक्शन एक आ इ पी एस अफसर के तौर पर हो गया। उसकी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था, मानो वो बादलों को छू रही हो। अब उसके जीवन का एक नया और अत्यंत महत्वपूर्ण सफर शुरू होने जा रहा था।
स्वरचित एवं मौलिक
लेखिका- अदिति मिश्रा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut achchhe Aditi!!
पापा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आभार एवं अभिनंदन 🙏
कैसी लगी आपको ये कहानी? कृपया ज़रूर बताएँ.
Please Login or Create a free account to comment.