कैसे बताऊँ किसीको एक ही तो ज़िन्दगी है
अच्छे से हर पल को जी लू वही तो बंदगी है
मुड़ के न देखना किसीको यही बस एक ख्वाहिश है
बस उस आसमान को छू के देखने की तो नुमाइश है
कैसे अपनी उड़ान भरूँ बस वही सोचती हूँ
उड़ने से पहले कहीं गिर न जाऊं बस उसीसे डरती हूँ
तितली जैसे रंगीले पंख फैलाके उड़ने की जो चाह है
अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की जो चाह है
उनके फिरसे अधूरे रह जाने से ही तो डरती हूँ
अब तो आदत सी हो गई है हर दर्द सहने की
और हर सपने को अधूरे रहने की
इंतज़ार करती रहती हूँ बस उस मौके की
जब फीके पड़े पंखों को रंग भर के उड़ने की
और उस उड़ान से अपनी हर अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने की
कैसे बताऊँ किसीको एक ही तो ज़िन्दगी है
अच्छे से हर पल को जी लू बस वही तो बंदगी है।
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