पता नहीं कब???

A poem to describe the pain of desi daughter in law... I don't know when the society will change the perspective towards the daughters in law...

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 810
Vridhi Chug
Vridhi Chug 21 Jan, 2021 | 0 mins read
Women #daughterinlaw

मैं तुम्हारी बेटी नहीं पर बेटी जैसी हूं।

कुछ साल उससे बड़ी या कुछ साल छोटी हूं।

मै भी उसके जितने प्यार

और ढेर सारे दुलार की प्यासी हूं।

काम काज सब करती हूं।

फिर भी क्यों मै तुम्हारी बेटी नहीं हूं?


देर रात तलक जाग कर

तुम्हारे बेटे की सेवा करती हूं।

तुम जो कहो सब तो मानती हूं

फिर भी क्यों मै तुम्हारी बेटी नहीं हूं?


तीन वक़्त का खाना बना के परोसती हूं।

बच्चों की देख रेख़ करती हूं।

पूरा समय तुम लोगों के लिए न्योछावर करती हूं

पर फिर भी मै तुम्हारी बेटी नहीं हूं।


कुछ कमी रह जाती है तो तुम सब के ताने सुनती हूं।

अपनी गलती है ये सोच कर मानलेती हूं।

अकेले में मां पिता को याद कर रोती हूं।

उन जैसा प्यार पाने के लिए तरसती हूं

फिर भी क्यों मै तुम्हारी बेटी नहीं हूं?


तुम्हारी बेटी जो करती है

वो सही करती है,

वही बात हम दोहराएं तो हम गलत करते है।

पता नही ये सोच कब तक चोट देती रहेगी

और कब तक बहू को बेटी बोल के,

बेटी का औधा नहीं दिया जाएगा।

पता नही कब तक हर बेटी को ये सेहना पड़ेगा।

पता नही कब मैं तुम्हारी बेटी बन पाऊंगी??

पता नही कब???


0 likes

Support Vridhi Chug

Please login to support the author.

Published By

Vridhi Chug

vridhichug

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.