लक्ष्मण : सर्वश्रेष्ठ अनुज

श्री राम और लक्ष्मण रामायण के दो पात्र नहीं हैं, बल्कि करोड़ों लोगों के आराध्य हैं, यह लेख लक्ष्मण जी के कुछ कम प्रचलित तथ्यों पर केन्द्रित है ।

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Prashast Vishal
Prashast Vishal 02 Apr, 2020 | 1 min read

आजकल रामानंद सागर जी की रामायण का
लक्ष्मण-परशुराम संवाद बहुत चर्चा में है,
कुछ लोग इसकी निंदा कर रहे हैं तो कुछ लोग इसे गर्व से शेयर कर रहे हैं !
लेकिन अपने अहंकार को चोटिल पाकर जो इसका विरोध कर रहे हैं और अपने अहंकार की संतुष्टी के लिये जो इसे शेयर कर रहे हैं वे इसके पीछे छिपे जटिल विरोधाभास से अंजान हैं ।
एक बार इस परिस्थिति पर प्रकाश ड़ालने का प्रयास करते हैं,
भगवान परशुराम शिव धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति यानी कि श्री राम को दण्ड देने की बात करते हैं और लक्ष्मण जी भगवान परशुराम से भिड़ जाते हैं। कोई निष्कर्ष निकालने से पहले ये जानने का प्रयास करते हैं कि लक्ष्मण कौन हैं, लक्ष्मण कोई और नहीं परंतु श्री-हरि के आसन शेषनाग का अवतार हैं..
शेषनाग यानी वह ऊर्जा जो सदैव शेष रहे, ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार ऊर्जा को ना उत्पन्न किया जा सकता है ना उसे नष्ट करना संभव है ।
यानी कि श्री-हरि ऊर्जा पर विराजते हैं, अब आते हैं
भगवान परशुराम पर..
भगवान परशुराम स्वयं विष्णु के अंशावतार हैं और श्री राम पूर्णावतार ।
अब पुनः इस परिस्थिति पर प्रकाश ड़ालते हैं -
भगवान परशुराम (विष्णु के अंशावतार) दण्ड देने की बात करते हैं श्री राम (विष्णु के पूर्णावतार) को और लक्ष्मण जी (शेषनाग के अवतार) परशुराम जी (विष्णु के अंशावतार) से भिड़ जाते हैं श्री राम के लिये।
इस संवाद में विष्णु का एक अवतार दूसरे अवतार के क्रोध के फलस्वरूप उसके आजीवन किए गए पुण्य कर्मों पर बाण चला देता है ! यह कुछ और नहीं ईश्वर की लीला है, हमें यह पाठ सिखाने के लिए कि स्वयं ईश्वर को भी अपने क्रोध का परिणाम भोगना पड़ता है ! यह लेख लक्ष्मण जी पर केंद्रित है तो जानते हैं उनसे जुड़े कुछ कम प्रचलित तथ्य ।
लक्ष्मण जी ने चौदह वर्ष कुछ नहीं खाया क्योंकि श्री राम ने उन्हें सदैव भोजन तो दिया पर उसे ग्रहण करने का आदेश कभी नहीं दिया, और लक्ष्मण जी श्री राम के आदेश के बिना कुछ नहीं करते थे।
माता सुमित्रा ने लक्ष्मण जी को वनवास भेजते समय उपदेश दिया था कि वे श्री राम को दशरथ, माता सीता को स्वयं माता सुमित्रा और वन को अयोध्या समझ कर अपना वनवास व्यापित करें, जिसके परिणाम स्वरूप इन्द्रलोक को जीतने वाले इन्द्रजीत 'मेघनाद' का वध करने में लक्ष्मण जी सफल रहे, वह मेघनाद जिसके भय से तीनों लोकों के सुर-असुर थरथर कांपते थे।
श्री राम लक्ष्मण से इतना प्रेम करते थे कि रणभूमी में जब वे मुर्छित होकर गिर पड़े तो श्री राम ने कहा कि
"मैं अयोध्या के बिना रह सकता हूँ, पिता-वियोग सह सकता हूँ सीता के बिना रह सकता हूँ लेकिन लक्ष्मण के बिना नहीं रह सकता।"
शेषनाग का अवतार होने के कारण लक्ष्मण जी की प्रवृत्ति ऊर्जावान थी, और उनका क्रोध भयानक था।
लक्ष्मण जी ने द्वापरयुग में बलराम के रूप में जन्म लिया और श्री राम ने श्री कृष्ण के रूप में,
इस बार शेषनाग विष्णु के अग्रज बनकर अवतरित हुए।
श्री विष्णु को कण-कण से प्रेम है परंतु शेषनाग से थोड़ा अधिक है, जब शेषनाग शिव जी के विशेष धनुष "मेरु पर्वत" की पृत्यंचा बनते हैं तो विष्णु तीर बनते हैं, जब विष्णु जय-विजय का अंतिम बार उद्धार करने आते हैं तो शेषनाग लक्ष्मण बनकर उनके साथ अवतरित होते हैं, जब विष्णु श्री कृष्ण के रूप में संसार को उपदेश देने आते हैं तो शेषनाग उनके अग्रज बलराम बनकर अवतरित होते हैं। सच बात है, यदि ईश्वर से ऊर्जा को, तीर से पृत्यंचा के प्रभाव को, लक्ष्मण से राम को अलग कर दिया जाए तो बचेगा एक रिक्तस्थान जिसका पूरक मानवीय विवेक कभी नहीं बन सकता ।
आप सभी को श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं,
आप सब पर ईश्वर की कृपा सदैव बनी रहे ।
स्वामी रामानंद के शब्दों से मैं अपने लेख को विराम देना चाहूँगा
"जाति - पाँति पूछे नहि कोई
हरि को भजै सो हरि का होई।।"
इति।

- प्रशस्त विशाल

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