सीमा के पिता ने उसकी पढ़ाई छुड़वाकर उसकी छोटी उम्र में ही शादी कर दी और अपने सिर से बोझ उतार दिया।
अब सीमा की जिंदगी अपने पति और बच्चों के भरोसे ही चल रही थी। पति भी ऐसा जिसे उसके जिस्म की भूख थी उसके मन को वह कभी समझ ही नही पाया। अपने को घर गृहस्थी में सीमा अपने आप को ही भूल गयी थी।
लेकिन एक दिन पड़ोस में रहने वाली सुशीला दीदी जो आंगनबाडी में कार्यकर्ता थी उन्होंने सीमा को बच्चों का खाना बनाने का काम सौंपा तो सीमा ने इस छोटे काम को हाथ से जाने नही दिया। कभी कभी हमारे द्वारा किये गए छोटे छोटे काम भी हमारे जीवन को बदल देते है। सीमा को पता है कि जिंदगी में अवसर बार बार दस्तक़ नही देते।
और आज के बाद सीमा भी आत्मनिर्भर बन गयी अब सीमा को अपने पति और पिता से कोई शिकायत नहीं है। सीमा के पास अब नौकरी थी और एक नई पहचान भी...☺️☺️
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