विभा, सत्यनारायण जी की इकलौती संतान थी सत्यनारायण जी ने अपनी गरीबी को दरकिनार कर अपनी बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ाया। उसकी हर छोटी सी ख्वाहिश को पूरा किया। दोनो पति पत्नी मिलकर मजदूरी करते और अपनी बेटी को खूब लाड़ प्यार से पाला था। विभा भी अपने पापा को अपनी मम्मी से ज्यादा प्यार करती है। अपनी हर छोटी बात भी अपने पिता से ही कहती थी। लेकिन समय भी कहाँ थमने वाला था ये बेटियां भी बिन पानी की बेल होती है... पता ही नही चलता कब बड़ी हो जाती है। विभा भी अब 20 साल की हो गयी थी। अब तो आस पड़ोस के सब कहने लगें की कब करोगे इसके हाथ पीले? सत्यनारायण जी अपनी बेटी की विदाई का सोचकर ही अपने आँसू नही रोक पाते। और विभा कह देती थी कि मुझे शादी ही नही करनी, मैं अपने परिवार को छोड़कर कभी नही जाऊंगी.... लेकिन धीरे धीरे समय बढ़ता गया। सत्यनारायण जी ने अपनी हैसियत से ऊँचा घर देखा, लड़का भी सरकारी नौकरी में था और विभा को भी परिवार पसंद आ गया था। अब पिता ने अपनी बेटी को विदा करने की तैयारी में जुट गए। अपनी बेटी के ससुराल वालों की हर छोटी बड़ी सभी डिमांड्स को पूरा कर रहे थे लेकिन इन सब मे विभा अपने परिवार को छोड़ के जाने को तैयार नही थी। फिर शादी के दिन भी पास आने लगे आज विभा का बान बैठा दिया गया। गणेश जी को मना कर सब रिश्तदार घर मे ले आए तभी हल्की बूंदाबांदी होने लगी। सब कहने लगे किसी नए काम को करते समय बारिश का आना शुभ समझा जाता है सभी खुश थे। फिर अगले दिन विभा की मेहंदी रस्म में काले काले बादलों का जमघट बादलों में छाया रहा। ऐसा लग रहा था कि अभी जम कर बरसने वाले हो लेकिन हल्की बारिश होकर रह गई। अगले दिन बारात भी आ गयी। सत्यनारायण जी ने सबका स्वागत सत्कार खूब अच्छे से किया। बारातियों को भी इस शादी में कोई कमी न दिखाई दी... सबको परिवार, दहेज़, खाना सब पसंद आया, सब बाराती सत्यनारायण जी की तारीफ कर रहे थे। जयमाला की रस्म के बाद अभी फेरे शुरू ही होने वाले थे कि आसमान में फिर से काले काले बादलों ने अपना डेरा डाल दिया और अब तो सब भगवान से प्राथर्ना कर रहे थे कि अब बारिश न आ जाए वरना फेरे कहाँ होंगे तभी किसी ने कहा कि रसोई से तवा लाकर किसी पतनाली के नीचे रख दो तो बारिश नही आयेगी ऐसा ही किया गया। थोड़ी बारिश के बाद अब मौसम बहुत सुहाना हो गया था। पंडित जी ने वर वधू के फेरे करवा दिए और सबका आशीर्वाद लेने को कहा गया। दोनो नव दंपति एक साथ मिलकर अपने माता, पिता और रिश्तेदारों के पांव छू रहे थे तभी विभा ने देखा कि उसके पिता उसकी तरफ नही देख रहे है तभी विभा ने माँ ने उसे पुकारा और कहा बेटा अब तुम अपना सामान देख लो थोड़ी देर में विदाई होगी। विभा ने अपने घर को देखा और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। कमरे में जाकर विभा रोने लगी। तभी उसके पिता भी उसके पीछे पीछे आ गए। क्या हुआ विभा? तुम्हारा सामान कहाँ है? लाओ मुझे दो मैं उसे बाहर दहेज़ के सामान के साथ रख देता हूँ ताकि तुम्हे तुम्हारे नए घर मे कोई तकलीफ न हों। इतना सुनते ही विभा अपने पिता के गले लग गयी और बोली पिताजी समाज ने ऐसी रीत क्यो बनाई है कि बेटी को अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहना होता है और शादी के बाद लड़कीं पराई हो जाती है? सत्यनारायण जी ने कहा विभा यह हमारे समाज का नियम हैं कि हर लड़की पिता के घर मे एक मेहमान की तरह रहती है, जब तक उसकी शादी न हो जाए तब तक... लेकिन मेरी बेटी तू मेरे लिए कभी पराई नही होगी तू तो मेरे कलेजे का टुकड़ा है जिसको मैं अपनी आँखों से दूर कर रहा हूँ लेकिन जिस दिन अपने दिल से दूर कर दूंगा, वो दिन मेरा आखिरी दिन होगा इस पृथ्वी पर.... नही पिताजी ऐसा मत कहिए विभा अपने आँसुओ को रोक न पाई और अपने पिताके गले लगकर रो रही थी तभी उसकी माँ ने आकर कहा अब आप इसे विदा तो कर दो बाहर सब इंतजार कर रहे है। सत्यनारायण जी ने बेटी का हाथ पकड़ा और चल दिये कमरे से बाहर... बाहर भी विभा को रोता देख रिश्तदार भी रोने लगे तभी बारिश भी होने लगी... अब सत्यनारायण जी को अपने आँसुओ को छिपाने की कोई जरूरत नही थी विभा ने अपने पिता की तरफ देखा तो उनकी आँखों मे आँसुओ का बादल छाया हुआ था जो अपनी लाडली बेटी की विदा करने में अब बारिश की इन नन्ही नन्ही बूंदों में बदल गया था। लेकिन एक विभा ही जानती थी कि उसके पिता के चेहरे पर ये बारिश नही आँसुओ का वो सैलाब है जो सिर्फ उसके लिए है। विभा अपने आप को रोक न सकी और अपने पिता के गले लग गयी और फिर बादलों की तेज गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश होने लगी और अब दोनों के आंसुओं की बारिश होने लगी। पिता और बेटी के इस प्यार में आज बादल भी झूम झूम कर बरस रहे थे।
सच्चाई यही है कि... पिता कभी अपने दुख को नही बता सकता कि बेटी को अपने घर से विदा करते समय उसके मन मे न जाने कितने बादल फटते है, दिल में तेज गड़गड़ाहट होती है, और मन के किसी कोने में तेज बारिश भी होती है लेकिन समाज के सामने एक पिता अपने इस दर्द को छिपा लेता है।
एक बेटी की कलम से...
विनीता धीमान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुन्दर
Aapne is kahani se emotional Kar Diya..😊
Thank you so much varsha ji
🙏🙏 thank you sonia ji❤️
बहुत ही भावुक कहानी
Very beautiful story
Thank you so much babita dear
Thank you archana ji🙏🙏
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