नाजो से पली उसकी लाडो
आज हो गयी पराई
ले गयी उसके घर का मान सम्मान
बांध के अपने आँचल की डोर से।
हाथों में मेहंदी, माथे पर बिंदिया
पैरों में पायल, मांग में सिंदूर सजा
बेटी बनी दुल्हन, लगती कितनी प्यारी
मन मे एक आस लिए चल पड़ी
एक नए घर को अपना बनाने।
ससुराल को अपना घर बनाया
पिता रूप ससुर जी पाया
माँ तो नही पर माँ जैसी सास को पाया।
घर को प्यार से सजा सवांर कर रखा
कभी किसी का दिल ना दुखाया।
बहू बनी ,पत्नी बनी अब माँ बनकर
लाड़ प्यार से बच्चों को पाला।
कभी कुछ न कहा किसी से..
जो न मिला, उसका कभी मलाल न किया
फिर भी उसका शांत रूप रास न आया।
सहती रही, चुप रही कभी न बोली
वो अपने दुख को सहती रही
पर कभी जुबान न खोली...
अपने पिता की, लाज शर्म को बनाये रखा
लेकिन वो जुल्मी जुल्म करते रहें।
पिता की बेटी जीत गयी
जिस घर मे बियाही गयी थी
वहीं से उसकी लाश निकली।
पिता की चीखें भी निकली
लेकिन कोई सुन न सका।
देख अपनी बेटी के उस रूप को
मुँह पर लड़े, मार के निशान को
हाथों पर लगे जले के निशान को
पैरों की टूटी हड्डियों को देखकर
पिता का मन भी पुकार उठा।
समाज ने कैसा दस्तूर बनाया है।
क्यों बेटी को पराया धन बनाया है
जिसकी बोली से गूंजता था घर मेरा
वही दूसरे घर में बेजुबान बनाया है।
कब तक होगा ऐसा?
कब वो दिन आएगा?
जब पिता अपनी बेटी से कहे कि
मेरी लाडो अब तू पराई नही
अब तू मेरी अपनी है...
आओ, आज हम सब मिलकर ले प्रण
अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर
ऐसा हथियार बनाएंगे...
जो अपनी तलवार खुद बनेगी
न झुकेगी, न थमेगी वो बस चलती ही जायेगी
उसके आगे नतमस्तक होगा...
ये समाज...🙏🙏❤️
विनीता धीमान
दिल्ली
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
,,😘💓👍बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया मम्मी आपका💐💐💐 ❤️❤️❤️
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