एक घर परिवार की जिम्मेदारी एक औरत पर निर्भर करती है।
वो औरत एक बहू है... जो घर के सभी सदस्यों की जरूरत को पूरा करने से लेकर पति तक को खुश करने तक की, कोशिश करती है।
जब उसके साथ पूरा परिवार होता है यदि घर में कोई भी बीमार हो जाए तो बहू को सेवा करनी है, ये बहू का कर्तव्य, फर्ज़ है। अपने बच्चों के साथ समय का पता ही नही चलता कब सुबह से शाम हो जाती हैं। कोई बीमार हो जाए तो वह बिस्तर से नहीं उठेगा। सब कुछ उसे वहीं लाकर दो, खाना, दवाई, और ऊपर से आने जाने वालों को भी सत्कार, चाय, पानी!
बहू बिचारी क्या क्या करे बहू ये लाना, वो देना, कौन आया, चाय बना दे।
अरे यह छोटू रो रहा है... इसे भी देख ले,
खाना बना दिया क्या तेरे पापा जी को भूख लग गई है और ना जाने कितने काम!
फिर पति देव का कहना क्या करती हो दिनभर।।
लेकिन फिर एक दिन
आज वो दिन आ ही गया, आज बहू को बुखार हो गया।
सब परेशान हो गए हैं कि कौन कौनसा काम करे!
पति, सास, ससुर और घर के सभो सदस्यों को परेशान देखकर बहू आराम भी नहीं कर पा रही है। लेकिन फिर भी शरीर साथ नहीं दे रहा, शरीर को हराकर खड़ी हो गई...
अपने लिए ना सही अपने बच्चों और परिवार के लिए एक बहू अपनी बीमारी को भुला कर अपने परिवार के लिए फिर बिस्तर छोड़ कर अपने काम ले लग जाती है।
क्या आप भी ऐसी किसी बहू को जानते हो जो बीमार होंके बाद भी अपने परिवार की देखभाल करती है ऐसे में उस परिवार का भी कर्तव्य बनता है कि वो अपने घर की बहू को पूरा सम्मान दे, बीमार होने पर उसकी देखभाल करें।
आप सबका क्या कहना है? इस बारे में... क्या बहु को उसका हक मिलना चाहिए या नही?
विनीता धीमान
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