विश्व सामाजिक न्याय दिवस की आप सबको बधाई☺️☺️
आज के लिए मेरी स्वरचित कविता "माथे का ताज" यह मैंने अपनी बेटियों के लिए लिखी है। आप सब मेरी बात से कितना सहमत है????
लड़की के पैदा होने पर रोने वालों... यह तो सोचों
लड़की एक घर की नहीं, दो घरों की शान होती है।
लड़की तुम्हारा झुकता सर नहीं, माथे का ताज होती है।
लड़की न हो तो कोई त्योहार, त्योहार नहीं होता,
लड़की न हो तो रिश्तों में वो, प्यार भी नहीं होता।
लड़की को पराया धन नहीं, अपना अभिमान बनाओ
लड़की के पैरों में बेड़ियाँ नहीं, आज़ादी के पंख सजाओ।
लड़की को लड़की ही रहने दो उनको बेटे का नाम न दो।
फिर बेटी को देख रोने वालों, अपनी बेटी पर नाज़ करोगे।
आज के दिन लो प्रण, अपने बेटे की तरह ही बेटी को दो हर पल जीने की आजादी।
आपकी दोस्त,विनीता
यदि आप सब को मेरी कविता पसंद आये तो लाइक जरूर करना और कमेंट जरूर करना।
धन्यवाद
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुन्दर भाव..! बेटियों के बिना तो समाज अधूरा है. बेटी बेटी है. बेटियों का सम्मान करें.. घर और बाहर दोनों स्थानों पर..! 👌🙏
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