जीवन भर जिन बच्चों की खुशी के लिए सरिता जी ने अपना सुख चैन सब गवां दिया। जिनकी परवरिश करते करते उनके बाल सफेद हो गए थे। पति की मौत के बाद भी सरिता जी किस तरह से अपने बच्चों को पाला था। ये सिर्फ वो ही जानती थी।
आज उन बच्चों के पास उनके लिए समय ही नही था... विदेश में बच्चों का अपना परिवार है। अपनी बूढ़ी माँ के लिए उनके आलीशान बंगले में कोई जगह नही है।
तब सरिता जी ने अपना बचा हुआ जीवन निशक्त और बेसहारा लोगों की सेवा में लगा दिया। आज उनकी आत्मा को सच्चा सुकून मिला है। अब उन्हें अपने बुढापे के लिए अपने बच्चों की कोई जरूरत नही है।
सच है यदि बुढ़ापे में आपके बच्चे आपकी परवाह नही कर रहे है तो आप सहारा स्वयं बनिए... आप भी उन्हें भूल जायें और अपने जीवन का उद्देश्य पहचानिए और उसे किसी सकारात्मक कार्य मे लगाइए, स्वयं को व्यस्त रखिये, अपने शौक को पूरा कीजिए। मन पूजा पाठ में लगाओ ताकि आप सदैव प्रसन्न रहे, निरोगी रहे
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