मैं विनीता धीमान शादीशुदा, दो प्यारे से बच्चों की माँ, पत्नी, बेटी, बहू हूँ। मेरा बचपन बीकानेर राजस्थान में बीता है।
बचपन से ही मैं अपने पापा की लाडली रही। मेरे पापा मेकेनिकल इंजीनियर है वहीं ऊन की फैक्ट्री में काम करते थे। हम चार भाई बहिन है, पापा ने हम को बहुत प्यार से पाला पोसा...😊😊 कभी कभी तो मम्मी की मार से भी बचाया जहां मम्मी को बहुत जल्दी गुस्सा आता था इसके पीछे भी सबक था कि मैं आगे आने वाले समय की लिए तैयार हो गयी।
मेरे ससुराल में सास, ससुर, देवर, पति सब है।
यहां दिल्ली में एक स्कूल में जॉब लग गयी लेकिन अपनी बेटी होने के कारण मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा और उसके ढाई साल के बाद मैंने फिर से स्कूल जॉइन कर लिया। सोचा था कि अब सब अच्छे से होगा मेरा स्कूल और घर सब बढ़िया चल रहा था। इस बार मैं फिर से प्रेग्नेंट हो गयी और एक बेटे की माँ बन गयी।
अब दो बच्चों के साथ मेरा नौकरी करना संभव नही था तो मैंने अपने सोए हुए सपने को जीना शुरु कर दिया आप सब सोच रहे हो वो क्या??? मेरा लेखन मुझे लिखने का शौक़ तो बचपन से था और मेरी कविताएं कभी कभी अखबार में भी आ ही जाती थी। एक दिन ऐसे ही सोशल नेटवर्किंग साइट को देखते हुए मुझे एक साइट मिली जहाँ पर आप अपने मन के भावों को सबके सामने रख सकते थे फिर क्या था मैंने लिखना शुरू किया। धीरे धीरे अब मुझे एक नई पहचान मिलने लगी जो मैंने खुद कमाई थी अब मैं एक माँ और पत्नी के साथ एक ब्लॉगर भी बन गयी। मेरे जान पहचान वाले भी अब मुझे लेखिका कहते है यह सब मुमकिन हुआ है... मेरे लेखन से।
अभी तो मैंने आँखे खोली है
अभी तो पंखों को फैलाया है
अभी दिल को मजबूत किया है
अभी तो उड़ना बाकी है
छोटे से दिल मे ख्वाहिश है बहुत
मेरी पहचान हो,मेरा भी नाम हो
थोड़ा सा मिला है,थोड़ा और मिलेगा
अधूरा सपना भी मेरा पूरा होगा
मेरी ख्वाहिशों का सफर अभी भी बाकी है
मेरे सोए हुए सपनो की उड़ान अभी बाकी है।
दूर से दिखती मंजिल को पाना अभी बाकी है
राह में आये रोड़े को पार करना अभी बाकी है।
सच है, अभी तो सफ़र में काफी पड़ाव आने है। मेरी पहचान, my identity ही मेरा लेखन है जो मुझे सुकून देता है। मेरी इस नई पहचान में एक श्रेय पेपरविफ़ को भी जाता है इस मंच पर मेरी कलम को सहारा जा रहा है। लेकिन अभी मंजिल दूर है.. मुश्किल नही.
धन्यवाद
आपकी दोस्त
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