सुनो कांता सुन रही हो तुम? सुधा बेटी इस बार मार्च की छुट्टियों मे नही आ रही। सुधाकर जी ने अपनी पत्नी कांता से कहा...
क्यों क्या हुआ जी? कांता जी ने रसोई से ही कहा...
दामाद जी का फ़ोन आया था... बोल रहे थे कि "इस कोरोना ने तो सारे प्रोग्राम पर ही पानी फेर दिया है। हम 20 तारीख को दिल्ली से चलने वाले थे। एक सप्ताह वही आपके पास जयपुर रहते लेकिन रे देश में बढ़ते कोरोना के कारण हम नही आ रहे"। सरकार ने सभी ट्रेन्स और बसों की आवाजाही को बंद कर दिया है| अब तो दिल्ली में कर्फ्यू कभी भी लग सकता है।लो जी, इस बार भी हम बच्चों नही मिल पायेंगे कांता ने उदास होकर कहा
तुम परेशान मत हो, जब भी हालात सामान्य हो जायेंगे तो हम दिल्ली चलेंगे| 2 दिन बेटी के घर रह सकते है। वो भी क्या करे हम सब की सुरक्षा हमारे हाथ ही है| यदि हम सबको इस वायरस से बचना है तो सावधानी तो बरतनी होगी। सही कहा आपने... लेकिन कोई बात नही। वहाँ भी तो वो अपने ही घर मे है। कांता जी ने सुधाकर जी से कहा...लेकिन कांता जब सुधा आ जाती है तो घर में रौनक आ जाती है। उसके बच्चों के साथ समय कब बीत जाता है पता ही नही चलता। हमारे दो बेटे और उनका परिवार भी है लेकिन उनके पास तो हमारे लिये समय हो नही है, वो तो अपने मे ही मग्न रहते है। हमारे बेटे हमारे पास होकर भी हमसे कितने दूर है| सुधाकर जी ने उदास होकर कहा...
"आप भी न कैसे हो" अब तक मुझे समझा रहे थे और अब, आप जी छोटा मत करो, उदास मत होइए। हमारी बेटी हमारे पास अभी नही तो जून में ग्रीष्मावकाश में तो अपने बच्चों के साथ जरूर आ जायेगी। तब तक हम दोनों मिलकर एक दूसरे का सहारा बनते है और इस कोरोना वायरस से लड़ते है। देख लेना एक दिन हम सब मिलकर इसको हरा देंगे। तब हमारी बेटी भी हमारे पास आ जायेगी कांताजी ने मुस्कुराते हुए अपने पति से कहा...😊😊
दोस्तों आप सब भी सुधा के तरह अपने शहर और अपने घरों में रहिये और सुरक्षित रहो।
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